....

G-23 नेताओं के निशाने पर राहुल गांधी - प्रियंका वाड्रा

 पांच राज्यों की हार को लेकर कांग्रेस में बढ़ रहा अंदरूनी असंतोष अब गांधी परिवार के नेतृत्व के खिलाफ खुले विद्रोह के रूप में सामने आ गया है। गुलाम नबी आजाद के आवास पर बुधवार को हुई असंतुष्ट जी-23 नेताओं की बैठक में प्रस्ताव पारित कर साफ कहा गया कि कांग्रेस को मौजूदा चुनौतियों से बाहर निकालने के लिए सामूहिक नेतृत्व का माडल ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने शीर्ष से लेकर सभी स्तरों तक सामूहिक व समावेशी नेतृत्व और निर्णय प्रक्रिया की जोरदार पैरोकारी की। इस बयान से असंतुष्ट खेमे के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, जी-23 के इस रुख से सोनिया गांधी को अवगत करा दिया गया है। समझा जाता है कि गुलाम नबी आजाद ने खुद इस संबंध में सोनिया गांधी को बैठक के दौरान ही फोन किया। संभावना जताई जा रही है कि आजाद गुरुवार को सोनिया से मुलाकात भी कर सकते हैं।



इस बैठक में कांग्रेस की पांच राज्यों में हार के कारणों की पड़ताल और लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं के पलायन पर चर्चा करते हुए नेताओं ने एक सुर से कहा कि नेतृत्व की मौजूदा कार्यशैली की खामियों के चलते ही पार्टी की यह दुर्दशा हो गई है। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिदर सिंह को बदलने के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि कांग्रेस अध्यक्ष और कार्यसमिति से चर्चा के बाद ही इतने अहम फैसले लिए जाने चाहिए थे। इससे साफ है कि उनका सीधा निशाना राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर था। इसी तरह एक असंतुष्ट नेता ने उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने के बड़े फैसले पर सवाल उठाया।

पार्टी की मौजूदा हालत के लिए नेतृत्व की खामियों की चर्चा करते हुए कहा गया कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाकर संकट से उबरने की कोशिशें कामयाब नहीं होंगी। पार्टी को सामूहिक नेतृत्व के रास्ते पर ही चलना होगा अन्यथा कांग्रेस के पास आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कुछ भी नहीं बचेगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल चुनाव होने हैं, लेकिन मौजूदा नेतृत्व जीत दिलाने में सक्षम नजर नहीं आ रहा। अगर पार्टी इन दोनों राज्यों में भी हार गई तो इस बात की उम्मीद कम ही रहेगी कि 2023 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान की अपनी सरकारें बचा पाएगी। नेताओं का कहना था कि ऐसा हुआ तो 2024 के लिए कांग्रेस के पास कुछ नहीं रहेगा और इस हालात को टालने के लिए सामूहिक नेतृत्व के माडल पर ही चलना पड़ेगा।

असंतुष्ट नेताओं ने कार्यसमिति के मौजूदा स्वरूप पर भी सवाल उठाया। उनका कहना था कि अहम नीतिगत मसलों पर चर्चा के लिए 23 सदस्यीय कार्यसमिति की बैठक होनी चाहिए, लेकिन हाईकमान अपने समर्थकों की भीड़ जुटाने के लिए 60-65 लोगों को बैठक में बुला लेता है। इनमें विशेष आमंत्रित सदस्यों से लेकर स्थायी आमंत्रित सदस्य तक शामिल होते हैं। असंतुष्टों का कहना था कि यह परिपाटी बंद होनी चाहिए।

दिलचस्प यह भी रहा कि बैठक में शामिल होने से कुछ घंटे पहले ही शशि थरूर ने ट्वीट कर कहा, "मैंने अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीखा है और इसलिए कुछ और गलतियां करने की सोच रहा हूं।" थरूर के इस ट्वीट के गहरे सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। बता दें, हाल ही में उन्होंने पीएम मोदी की बातों में अटल बिहारी वाजपेयी की झलक नजर आने की बात कही थी।

Share on Google Plus

click vishvas shukla

    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment