बीजिंग: चीन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अरुणाचल प्रदेश दौरे का ‘कड़ा विरोध’ किया है, जिसे वह दक्षिणी तिब्बत बताता है. चीन ने कहा कि वह भारत के साथ राजनयिक विरोध दर्ज कराएगा.
मोदी के गुरुवार (15 फरवरी) को अरुणाचल दौरे की खबरों के बारे में पूछने पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुयांग ने कहा, चीन-भारत सीमा के सवाल पर चीन का रुख नियमित एवं स्पष्ट है.
सरकारी संवाद समिति शिन्हुआ ने गेंग के हवाले से खबर दी, चीन की सरकार ने कभी भी तथाकथित अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी और वह भारतीय नेताओं के विवादित इलाके के दौरे का पूरी तरह विरोध करता है. उन्होंने कहा, हम भारतीय पक्ष के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराएंगे.
गेंग ने कहा कि विवादों का उचित तरीके से प्रबंधन करने के लिए भारत और चीन के बीच महत्वपूर्ण आम सहमति है और दोनों पक्ष बातचीत और विचार-विमर्श के जरिये जमीन विवाद सुलझाने पर काम कर रहे हैं.
गेंग ने कहा, चीनी पक्ष भारतीय पक्ष से आग्रह करता है कि इसकी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करें और उपयुक्त सहमति का पालन करें और ऐसा कोई काम करने से बचें जिससे सीमा विवाद और जटिल हो जाए.
शिन्हुआ से उन्होंने कहा, ‘‘भारत और चीन के बीच अवैध मैकमोहन रेखा और परंपरागत सीमा के बीच स्थित ये तीन इलाके हमेशा से चीन का हिस्सा रहे हैं.’
’ उन्होंने कहा कि ब्रिटेन द्वारा 1914 में खींची गई मैकमोहन रेखा इन इलाकों को भारतीय क्षेत्र में शामिल करने का प्रयास था.
चीन अरुणाचल प्रदेश में भारतीय नेताओं के दौरे का नियमित रूप से विरोध करता है और राज्य पर अपना दावा करता है. भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर विवादित क्षेत्र है. दोनों पक्षों के बीच मुद्दे के समाधान के लिए विशेष प्रतिनिधि के माध्यम से अभी तक 20 दौर की वार्ता हो चुकी है.
इससे पहले एक मालदीव के राजनीतिक संकट के बीच चीन ने धमकी भरे अंदाज में भारत से कहा था कि अगर उसने इस मामले में सैन्य कार्रवाई की तो वह भी खामोश नहीं बैठेगा.
सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में यह बात कही गई है. संपादकीय में कहा गया है कि मालदीव इस समय संकट से जूझ रहा है, ऐसे में भारत को भी संयम से काम लेना चाहिए.
संपादकीय में मौजूदा राजनीतिक संकट को मालदीव का आतंरिक मामला बताते हुए कहा गया है कि अगर भारत सैन्य दखल देता है तो चीन भी जवाबी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगा.
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