अधारताल तालाब में अमावश की रात भक्तों की भीड़ होती है। यह तालाब गोंडवाना शासन में रानी दुर्गावती के विशेष सेवापति रहे दीवान अधार सिंह के नाम से बनाया गया था।
यहां पर मां लक्ष्मी का मंदिर स्थित है। यह स्थान पचमठा मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह स्थान पूरे देश के तांत्रिकों के लिए साधना का विशेष केंद्र माना जाता है। मंदिर के चारों ओर श्रीयंत्र की विशेष रचना है।
यहां आज भी मां लक्ष्मी की प्रतिमा दिन में तीन बार रंग बदलती है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माम लगभग 11 सौ वर्ष पूर्व हुआ था।
मंदिर के अंदरूनी भाग में श्री यंत्र की अनोखी संरचना है। यहां की विशेष बात यह है कि आज भी सूर्य की पहली किरण मां लक्ष्मी के चरणों में पड़ती है।
कहा जाता है कि प्रतिदिन प्रतिमा का रंग तीन बार परिवर्तित होता है। प्रात: काल में प्रतिमा का रंग सफेद, दोपहर में पीला और शाम को नीला हो जाता है।
मंदिर में प्रत्येक शुक्रवार को भक्तों की भीड़ रकती है। दीवाली के दिन तो भक्तों का तांता लगा रहता है।
कहा जाता है कि सात शुक्रवार यहां मां लक्ष्मी के दर्शन करने से प्रत्येक मनोकामना पूर्ण हो जाती है। दीवाली पर मां लक्ष्मी का विशेष पूजन होता है।
उनका विशेष अभिषेक होता है। दीवाली की रात मंदिर के कपाट पूरी रात खुले रहते हैं। लोग दूर-दूर से यहां दीपक प्रज्वलित करने आते हैं।
0 comments:
Post a Comment