अंकारा। सैन्य तख्तापलट के प्रयास को नाकाम करने और इस घटना में कम से कम 265 लोगों के मारे जाने के दावे के बीच तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के समर्थन में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए।
13 साल के अपने शासन में खूनी चुनौती का सामना करने वाले एर्दोगन ने आठ करोड़ लोगों की संख्या वाले देश में शुक्रवार को अशांति के बाद विजेता के रूप में इस्तांबुल में झंडा लहराते हुये समर्थकों को संबोधित किया।
तुर्की में सैन्य विद्रोह कर तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया गया है। लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों और तोपों के हमलों से बेपरवाह लोग राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन की अपील के बाद भारी तादाद में सड़कों पर उतरे और सरकार समर्थक सैनिकों ने सत्ता पर काबिज होने के बागियों के मंसूबों को चकनाचूर कर दिया।
हालांकि लोकतंत्र की हिफाजत की इस जंग में 161 लोगों को जान गंवानी पड़ी। वहीं जवाबी कार्रवाई में एर्दोगन समर्थक जवानों ने 104 बागी सैनिकों को मार गिराया। तख्तापलट की साजिश में दो शीर्ष जनरलों समेत 2839 बागियों को गिरफ्तार किया गया।
2,745 जजों को भी हटा दिया गया है जबकि संवैधानिक कोर्ट के एक न्यायाधीश को हिरासत में ले लिया गया है। बागियों के हमले से संसद भवन क्षतिग्रस्त हो गया है। विद्रोहियों ने सरकारी टेलीविजन को कब्जे में लेकर सैनिक शासन की जबरिया घोषणा करा दी, लेकिन शनिवार सुबह होते-होते इसकी हवा निकल गई।
बागियों के हमले में राष्ट्रपति एर्दोगन बाल-बाल बचे। दक्षिण-पश्चिमी तटीय शहर मैरीमेरिस में छुट्टी मना रहे राष्ट्रपति के उस ठिकाने को भी बमबारी कर उड़ा दिया, जहां वह ठहरे थे। लेकिन, शुक्रवार रात को बगावत की सूचना मिलते ही एर्दोगन वहां से इस्तांबुल के लिए निकल चुके थे।
उन्होंने सीएनएन के रिपोर्टर के स्मार्ट फोन की वीडियो कॉलिंग सर्विस के जरिये देशवासियों को संबोधित किया। देर रात इस्तांबुल के अतातुर्क एयरपोर्ट पहुंचे राष्ट्रपति ने सैन्य विद्रोह के खिलाफ अपील करते हुए कहा, "सड़कों पर कब्जा जमाए रखो, कभी कुछ भी हो सकता है।" उन्होंने विद्रोह के लिए अमेरिका में रह रहे फेतुल्ला गुलेन को दोषी ठहराया और अमेरिका से उसके प्रत्यर्पण की मांग की।
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