फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन होली (धुरेड़ी) खेली जाती है। इस बार होलिका दहन 22 मार्च को धुरेड़ी 23 मार्च को है। होली का नाम सुनते ही मन में अचानक ही रंगों से सराबोर चेहरों की याद ताजा हो जाती है। और हो भी क्यों न, क्योंकि होली त्योहार ही रंगों का है।
होली का त्योहार भारतीय परंपरा का वह स्वर्णिम पन्ना है, जिसका हर अक्षर खुशियों के रंग से लिखा है। होली जीवन का उत्सव है, जिंदगी में उत्साह और उमंग के संचार का पर्व है। पर्व का शाब्दिक अर्थ है गांठ, गठान या जोडऩा। होली इस मायने में एकदम सटीक है।
होली के रंगों से सराबोर हो जाना, मूलत: इसी बात का प्रतीक है कि हम अपने परिवार में, परिचितों में और दोस्तों में इस तरह घुलमिल जाएं कि चेहरे हमारी पहचान नहीं हो, पहचान हो केवल हमारी भावनाएं। यह भावनाओं की अभिव्यक्ति का त्योहार है।
रक्षाबंधन हो या दीपावली सारे त्योहारों के मूल में या तो धार्मिक महत्व है या वैज्ञानिक। होली एक मात्र ऐसा त्योहार है, जिसमें सबसे अधिक मानवीय रिश्तों को तरजीह दी गई है।
हमारे रिश्ते ही हमें जीने की ऊर्जा और आत्मिक बल देते हैं। बाकी सारे त्योहारों पर मुख्यत: पूजा-पाठ, कर्मकांड, दर्शन और भक्ति प्रमुख होते हैं, लेकिन होली पर हम मंदिर नहीं जाते, अपनों के घर जाते हैं, उन्हें बुलाते हैं, रंगों में भिगोते हैं। होली पर पूजा-पाठ से ज्यादा हंसी-ठिठौली का महत्व है।
आधुनिक समय में रिश्ते अपने अर्थ खोते जा रहे हैं, व्यस्तता के दौर में हम अपनों से दूर हो रहे हैं। ऐसे में होली जैसे त्योहार हमें फिर से अपनों के नजदीक आने का मौका देते हैं।
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