भोपाल. गुरुवार सुबह पांच बजे तीसरे (टीपी-1) बाघ ने शहर के एक अलग कोने में दस्तक दी। करोंद इलाके के नवीबाग स्थित एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में एक शेड के पास बैठा दिखा। बाघ की हलचल समरधा फॉरेस्ट रेंज केे प्रेमपुरा, गीदगढ़ इलाके में थी, जहां तीन दिन पहले उसने शिकार भी किया था।
जब राजधानी की सीमा में दाखिल हुआ तो सबसे पहले किसानों और गार्ड की निगाह उस पर गई। फौरन पुलिस और वन विभाग को जानकारी दी। पांच महीने में दो बाघों को काबू में करने में पहले से नाकाम वन विभाग के अफसरों की नींद उड़ गई। जब तीन घंटे बाद उनके उड़नदस्ते ने पुष्टि की तब कहीं उन्हें भरोसा हुआ और अफसर आए। वन विहार नेशनल पार्क की रेस्क्यू टीम ने नौ घंटे बाद उसे काबू किया। इस दौरान बाघ एक छत से दूसरी छत पर कूदता रहा। आगे पढ़िए बाघ की पहली झलक से उसे काबू करने तक का पूरा घटनाक्रम।
बदले मौसम में गुरुवार की सुबह हवा सर्द थी। निशातपुरा के पास देवलखेड़ी के जगदीश मीणा सब्जी कारोबारी हैं। रोज की तरह करोंद जा रहे थे। सुबह पांच बजे का वक्त था। वे बाइक पर थे। इसलिए ठंड कुछ ज्यादा ही लग रही थी। नबीबाग के सामने मृदा विज्ञान केंद्र के पास से गुजरे। बाइक की रोशनी में निगाह
सामने गई तो सर्दी एक झटके में रफूचक्कर हो गई। जो देखा, आंखों पर यकीन ही नहीं आया। सामने सड़क
पार करता हुआ शानदार बाघ था। पलक झपकते ही वह कृषि अभियांत्रिकी संस्थान की ऊंची दीवार फांद चुका था। मीणा के होश फाख्ता हो गए।
तक खबरें पढ़ रहे थे कि शहर के आसपास बाघ घूम रहे हैं, यह पहला मौका था जब अपनी आंखों से करीब
फीट दूरी से उसे देखा। वे कहते हैं-मैं सब्जी मंडी जाना भूल गया। बाइक लौटाई और सीधा घर वापस आया। घर में आकर राहत की सांस ली। तब समझ में नहीं आया कि किसे बताऊं? जब सबको बाघ की मौजूदगी की खबर हुई और मजमा जुटा तब मीणा वापस यहां आए।
सुबह 5 बजे: जगदीश मीणा बाघ को सड़क पार करता हुआ देखकर चले गए थे। संस्थान के सिक्युरिटी गार्ड हीरालाल मिश्रा की नजर में 5.45 बजे बाघ आया। सर्दी में ठिठुर रहे हीरालाल के पसीने छूट गए। बताया-”संस्थान के मेन गेट से 10 मीटर की दूरी पर देखा। इतना बड़ा जानवर कभी नहीं देखा। अपने सीनियर्स को हमने जानकारी दी।’ सिक्योरिटी ऑफिसर ने बताया कि जब हीरालाल बाघ देखकर आया तो उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। वह बुरी तरह घबराया हुआ था। हमने उसे शांति से बैठाया। पूछा। जब सुना कि बाघ यहां है तो हमारी भी वही हालत थी। मगर हमने सबसे पहले पुलिस को इत्तला दी।
सुबह 8 बजे : वन विभाग के उड़नदस्ते ने पुष्टि की कि बाघ है। वन मंडल के वरिष्ठ अफसर नौ बजे मौके पर पहुंचे। वन विहार की रेस्क्यू टीम पूरी तैयारी से आई। तब तक भारी मजमा जुट गया। भीड़ के कारण टीम को दिक्कतें हुईं। लोग तस्वीरें लेने की कोशिश में थे।
सुबह 11 बजे : एपीसीसीएफ आर. श्रीनिवास मूर्ति की अगुआई में ऑपरेशन शुरू हुआ। वेटरनरी डॉक्टर अतुल गुप्ता भी पहुंचे। ट्रेंक्यूलाइज करने के लिए बाघ तक पहुंच मुश्किल थी। दो तरफ से पहुंचने की कोशिश की। नाकाम हुए तो नगर निगम से हाइड्रोलिक मशीन बुलाई।
दोपहर 12:30 बजे : डॉ. गुप्ता हाइड्रोलिक मशीन में बैठे। ट्रेंक्यूलाइज करने के लिए बमुश्किल निशाना साधा। तभी बाघ ने डाॅक्टर पर छलांग लगा दी। लेकिन वो बच गए। इस दौरान बाघ पुरानी वर्कशॉप की सीमेंट की चादर पर गिर पड़ा। चादर टूट गई। वह हॉल के भीतर जा गिरा।
दोपहर 1.30 बजे : डाॅ. गुप्ता ने पहला डोज दिया। इसके आधा घंटा बाद दूसरा डोज। इसके बाद जाल डाला गया। अब वह बेहाेश था। टीम के 20 सदस्यों ने मिलकर उसे उठाया। पिंजरे तक लाए। आधा घंटे बाद एंटी डोज दिया गया। ताकि होश में आ जाए। दो बज चुके थे।
शाम को पन्ना नेशनल पार्क भेजा
भीड़ ने मुश्किलें बढ़ाईं। भीड़ को काबू करने के लिए 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी मौजूद थे। ज्यादातर तमाशबीन मोबाइल फोन से वीडियो और फोटो बनाने में मगन थे। शाम वन विहार से उसे पन्ना नेशनल पार्क भेज दिया गया।
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