कछुआ का नाम सुनते ही लोगों के मन में धार्मिक भावनाएं उमड़ने लगती
हैं. वजह ये है कि वास्तुशास्त्र और हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में कछुए को
शुभदायक माना गया है.
भगवान का भी एक बार कच्छप अवतार हो चुका है, लेकिन हम आपको
एक ऐसे कछुए के बारे में बताने जा रहे हैं जो आकार-प्रकार में अनोखा है और
उसकी पूजा हो रही है. बड़ी संख्या में लोग इस अनोखे कछुए को देखने-पूजने
लातेहार के गांव में आ रहे हैं.
कहां और कैसा है ये कछुआ
लातेहार और पलामू जिला के सीमावर्ती गांव कमारू के
कटईयाटोला में एक अद्भुत कछुए को देखने के लिए सुबह से शाम तक लोगों का
जमावड़ा लगा रहता है. धार्मिक दृष्टिकोण से शुभ होने के कारण यह स्थान अब
पूजा-पाठ का केन्द्र बन गया है. कछुए के दो आगे वाले पैर आदमी के पैर की
तरह हैं, जबकि पिछले दो पैरों में एक शेर और दूसरा हाथी की तरह है. कछुए के
ऊपरी कवच पर मंदिर की तरह आठ आकृतियां हैं, जिन पर लगता है कि नक्काशी की
गई है.
खाता है उढ़उल का फूल, पीता है दूध
एक और खासियत ये है कि कछुआ भोजन के रूप में सिर्फ दूध और
उढ़उल का फूल ही खाता है. इससे भी लोगों की धार्मिक आस्था को बल मिल रहा
है. महिलाएं इसे दैवीय अवतार मानकर पूज रही हैं. आमतौर से साधारण कछुआ काफी
डरपोक किस्म का जीव होता है, जो किसी की आहट पाते ही अपने मजबूत कवच में
छिप जाता है, लेकिन यह कछुआ लोगों की आहट पाते ही मुंह बाहर की तरफ निकालकर
चलता है और किसी के द्वारा भी उढ़उल का फूल देने पर खाने लगता है. तीन साल
पहले सोना देवी और देवन भूईया को यह कछुआ मिला था तब से वे लोग इसकी
पूजा-अर्चना करते हैं. देवन दंपत्ति ने बकायदा अपने घर में देवस्थान बना
दिया है और उसे मंदिर का रूप दे रखा है.
दर्शन-पूजन के लिए जुटते श्रद्धालु
आस-पास के कई पंचायतों में लोगों को इसके बारे में पता
चलने के बाद अब श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. काफी लोग यहां इसे देखने
आ रहे हैं. कछुआ का मुंह जिस जगह से निकलता है उसमें बैल के दांत की आकृति
बनी है और पीछे हाथी की तरह पूंछ भी है. यानी हर चीज अद्भुत है.
मनिका क्षेत्र के स्थानीय विधायक हरे कृष्ण सिंह इस अनोखे
कछुए को बेहद खास मानते हुए इसे आस्था और विश्वास का नायाब केन्द्र मानते
हैं.
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