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हिंडनबर्ग रिपोर्ट और सेबी तथा सरकार पर उठते सवाल - कुणाल चौधरी

 


प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी मुख्य प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक कुणाल चौधरी ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट मामले को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं। चौधरी ने अपने वक्तव्य में बताया कि यह पूरा मामला काले धन को सफ़ेद करने का खेल है जिसे आप उसी संदर्भ में देखें। नरेंद्र मोदी ने काला धन समाप्त कर विदेशों में छिपा काला धन वापस लाने का वादा किया था। लेकिन यह मालूम नहीं था कि वे पहले भारत में काला धन एकत्रित करेंगे और उसे विदेशों में स्थापित काला धन को सफ़ेद करने वाली कंपनियों को देकर उसे कुछ चुने हुए मित्रों की कंपनियों के शेयर की क़ीमत में वृद्धि कराएँगे। उसके आधार पर बैंकों से क़र्ज़ दिलवा कर पोर्ट, एयरपोर्ट आदि ख़रीदेंगे। यही इसका सार है। 


मोदी सरकार यानी सूट-बूट-लूट और स्कूट की सरकार। मोदी सरकार जनता से सब कुछ छीनकर उद्योगपतियों को कैसे बडा कर रही है? वर्ष 2013-14 में यूपीए सरकार के खिलाफ भाजपा और उसके सहयोग से अन्य लोगों जैसे बाबा रामदेव और अन्ना हजारे आदि ने भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ आंदोलन किये। भाजपा ने वादा किया कि वो यदि सत्ता में आती है तो देश से भ्रष्टाचार को समाप्त कर देगी, देश के लोगों द्वारा विदेशो में जमा किया गया कालाधन वापस लेकर आयेगी और वह धन इतना होगा कि देश के प्रत्येक परिवार को देश 15-15 लाख रूपये दिये जाएंगे। वर्ष 2014 में भाजपा की सरकार बनी। 26 मई 2014 को श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। अगले ही दिन कालेधन को वापस लाने के लिए केबीनेट की प्रथम बैठक में एस.आई.टी. का गठन किया गया। 2014 से आज तक न तो एस.आई.टी. ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है और न ही सरकार ने जनता को यह बताया है कि वह 10 साल में विदेशो में जमा कितना कालाधन वापस भारत लेकर आ गई है।


कालाधन बढ़ा या घटा-? कालाधन तो नही आया लेकिन भ्रष्टाचारियों ने ऑफशोर कंपनियों और ऑफशोर फण्ड में कालेधन को लगाना प्रारंभ कर दिया। वही कालाधन बेनामी कंपनियों के माध्यम से भारत के स्टॉक मार्केट में लगाया गया और उसे सफेद किया गया।



ऑफशोर कंपनियॉ और फण्ड क्या होते है ? ऑफशोर कंपनियॉ ऐसी कंपनियॉ होती है जो टेक्स हेवन देशों जैसे- मॉरिशस, बरमूडा, स्विटजरलेण्ड जैसे देशों में रजिस्टर्ड की जाती है। वहॉ इन्हें टैक्स में छूट मिलती है या इन्हें बहुत कम टेक्स देना होता है। ऑफशोर फण्ड इंटरनेशनल फण्ड होते है जो म्यूचुअल फण्ड की तरह ही होते है लेकिन इनका पंजीयन विदेश में होता है। ये बेनामी फण्ड भी कहे जाते है।


अडाणी समूह पर आरोप है कि उसने अपना और अपने मित्रों का ही पैसा ऑफशोर कंपनियों के माध्यम से भारतीय शेयर बाजार में लगाकर मार्केट में कृत्रिम उछाल पैदा किया और फिर लाभ कमाने के लिये फण्ड को ऊॅचे दाम पर एकाएक बेच दिया जिससे भारतीय शेयर बाजार गिरने लगे तथा छोटे निवेशकों ने अधिक नुकसान से बचने के लिये कम दाम पर अपने स्टॉक को बेचा। यह अडाणी समूह की ऑफशोर कंपनियों द्वारा सतत किया जाता रहा।

24 जनवरी 2023 को हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद अडाणी समूह के शेयर 83 प्रतिशत गिर गये थे तथा इसमें कुल 100 बिलियन डॉलर्स अर्थात 80 लाख करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान हुआ था। सेबी की एक बाजार नियामक के रूप में संदिग्ध कार्यप्रणाली के कारण उस पर से लोगों का विष्वास उठ रहा है और लोग बाजार की गतिविधियों को संदिग्ध नजर से देखने लगे है।


REITs  क्या है?  यह रीयल इस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट एक प्रकार कंपनी होती है। ये कंपनियॉ अचल संपत्तियों के लिये फण्डिंग करती है। ये कंपनियॉ लोगों से आई.पी.ओ. या निजी प्लेसमेंट के माध्यम से पूॅजी जुटाती है। इस पूॅजी का उपयोग अचल संपत्तियों- जैसे कार्यालय भवन, अपार्टमेंट, शॉपिंग सेंटर होटल्स आदि संपत्तियों में निवेश करने के लिये किया जाता है। इन संपत्तियों से किराये की आय अर्जित की जाती है और आय का आम तौर पर 90 प्रतिशत हिस्सा शेयरधारकों में बॉट दिया जाता है। शेयरधारक स्टॉक एक्सचेंज पर REITs शेयरों को खरीद या बेच सकते है। सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के पति धवल बुच ऑफशोर कंपनी ब्लेकस्टोन सहित अन्य कंपनियों में सहभागी है। ब्लेकस्टोन का भारत की REITs कंपनियों में बड़ा निवेश है। अर्थात कहा जा सकता है कि माधबी पुरी के पति का भारत की कंपनियों में बड़ा निवेश है जो स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध है।


माधबी बुच सेबी की चेयरपर्सन है और उन्होंने अपने पति के निवेश  वाली REITs को सार्वजनिक रूप से प्रोत्साहन दिया है। उन्होंने 13 मार्च 2024 को सार्वजनिक बयान देते हुये देश के लोगों से REITs में निवेश करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था - The first thing is for us as a regulator to  go to retail investors, to go to our parents, in-laws, uncles, aunts, nieces and nephews to say, this is a very good product] you should invest in REITs

 


ब्लेकस्टोन जैसी ऑफशोर कंपनियों में कहॉ से पैसा आता है और किसका पैसा आता है इसका पता लगाने का कोई प्रावधान नही है। इन कंपनियों में मोटे तौर पर कालाधन होता है तथा यही कालाधन REITs जैसी कंपनियों में लगाकर सफेद कर लिया जाता है। सरकार और सेबी इन्हें प्रोत्साहन दे रही है।


हिंडनबर्ग रिसर्च क्या है? - हिंडनबर्ग रिसर्च एक अमेरिकी फाइनेंस रिसर्च फर्म है जिसके प्रमुख नाथन एण्डरसन है। यह फर्म फॉरेंसिक अकाउंटिंग और स्टॉक मार्केट में शॉर्ट सेलिंग करती है। फर्म का मुख्य उद्देश्य अपने गहन रिसर्च के माध्यम से कार्पाेरेट धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों के धोखों और अनियमितताओं और अनैतिक कार्यप्रणाली को उजागर करना है। इस फर्म की रिसर्च रिपोर्ट ने दुनियॉ की अनेक बड़ी कंपनियों के धोखों, अनियमिततओं और अनैतिक कार्यप्रणाली को उजागर किया है। जिसके कारण दुनियॉं भर के शेयर मार्केट प्रभावित हुये है। जनवरी 2023 में भारत की अडाणी समूह की कंपनियों पर जारी हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के कारण भारत में निवेशकों को एक ही दिन में 80 लाख करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान हुआ था। इस मामले की जॉच सरकार ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) जो स्टॉक मार्केट का रेग्यूलेटर है, को सौंपी थी। जिसमें सेबी ने अडानी समूह पर लगाये गये आरोपों पर कोई कार्यवाही नही की। दिनांक 10.08.2024 को हिंडनबर्ग ने एक और रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की उन ऑफशोर कंपनियों में हिस्सेदारी रही है, जो अडानी समूह की वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ी हुई थीं। अडानी समूह की जिन वित्तीय अनियमितताओं की जॉच सेबी द्वारा की जा रही थी उन्हीं अडानी समूह की ऑफशोर कंपनियों में सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने अपना पैसा लगा रखा है। तो यह समझना आसान है कि घोटाले में जब सेबी की चेयरपर्सन शामिल है तो वह अपने ही खिलाफ कैसे जॉच करेगी?

इस रिपोर्ट के बाद अडाणी समूह के शेयर में 17 प्रतिशत की गिरावट आई अर्थात अडाणी समूह में निवेश करने वाले छोटे निवेशकों को एक ही दिन में 17 प्रतिशत का नुकसान हो गया। 12 अगस्त को निवेशकों को हुआ यह नुकसान कुल 53000 करोड़ का था।


माधबी पुरी बुच कौन है? - माधबी पुरी बुच सेबी की चेयरपर्सन है। वे इस पद पर पदस्थ होने वाली पहली महिला है तथा 2 मार्च 2022 से चेयरपर्सन के पद पद पदस्थ है। इसके पूर्व वे सेबी की मार्च 2017 से अक्टूबर 2021 तक सेबी की पूर्णकालिक सदस्य रही हैं। सेबी के अभी तक चेयरपर्सन रहे सभी व्यक्ति भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी/ से.नि. अधिकारी रहे है। माधबी पुरी बुच पहली ऐसी चेयरपर्सन है जिन्हें कार्पाेरेट सेक्टर के अनुभव के बाद सेबी चेयरपर्सन बनाया गया है।

 

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है जब भारत सरकार में अतिरिक्त सचिव, सचिव और डायरेक्टर जैसे पदों पर भी कार्पाेरेट सेक्टर के लोगों को पदस्थ किया गया है। इसके लिये उन्हें कोई सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण नही करनी पड़ती है।

कार्पाेरेट सेक्टर के लोगों को सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर Lateral entry scheme के माध्यम से नियुक्त किये जाने की परंपरा मोदी सरकार ने 2018 से प्रारंभ की है। ये सभी लोग बड़े कार्पाेरेट घरानों से लिये जाते है तथा कार्पाेरेट एक्सपर्ट होते है और सरकार में बैठकर निर्णय लेते है।


भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) क्या है? - SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) भारत में स्टॉक मार्केट की नियामक संस्था है जिसे 1988 में स्थापित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य निवेशकों के हितों की सुरक्षा करना, प्रतिभूति बाजार के विकास को बढ़ावा देना, और बाजार की गतिविधियों को विनियमित करना है। पोर्टफोलियो मेनेजर्स, स्टॉक ब्रोकर्स और निवेश सलाहकारों जैसे बाजार प्रतिभागियों के लिये एक मंच प्रदान करना है। भारत में 31 मार्च 2024 तक 15.1 करोड़ लोगों के पास डीमेट अकाउण्ट है जो या तो स्टॉक में या म्यूचुअल फण्ड में निवेश करते है। ये सभी रिटेल निवेशक है जो मध्यमवर्ग से आते है। शेयर बाजार के उतार चढ़ाव का सबसे ज्यादा असर इन्ही पर होता है।


SEBI की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच पर क्या आरोप है ? - सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर आरोप है कि उन्होंने सेबी चेयरपर्सन के रूप में अडाणी समूह से जुड़ी हुई ऑफशोर कंपनियों द्वारा वित्तीय अनियमितताओं और नियमों का उल्लंघन करने के मामलें में निष्पक्ष जॉच नही की। सर्वाेच्च न्यायालय को कहा गया कि इस मामले में उन्हें कुछ नही मिला। माधबी बुच ने सर्वाेच्च न्यायालय से यह बात छुपाई कि जिन फण्ड की जॉच वे कर रही थी उनमें उनका या उनके पति का निवेश था। उन्होनें अडाणी समूह की कंपनियों का बचाव किया। उन्होंने ऐसा इसलिये किया क्योंकि वे स्वयं तथा उनके पति धवल बुच अडाणी समूह से जड़ी हुई ऑफशोर कंपनियों में हिस्सेदार है। माधबी पुरी बुच 2017 से 2022 तक सेबी में पूर्णकालिक सदस्य अर्थात व्होल टाइम मेंबर थी तब उनके पास एक सिंगापुर की एक ऑफशोर फर्म अगोरा पार्टनर्स में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। जब वे सेबी की चेयरपर्सन बन गई तो उन्होंने यह हिस्सेदारी अपने पति धवल बुच को ट्रांसफर कर दी। माधबी बुच 2015 में ग्लोबल डेवलपमेंट अपॉर्चुनिटीज फण्ड का हिस्सा रही। जब वे सेबी की पूर्णकालिक सदस्य बनी तो उन्होनें अपने निवेश एवं अपने पति की कंपनियों में उनके एवं पति के निवेश की जानकारी सेबी को नही दी। माधबी बुच के पास वर्तमान में अगोरा एडवाइजरी नामक कंपनी में 99 प्रतिशत हिस्सेदारी है और उनके पति धवल बुच इसके डायरेक्टर है। उनके पति धवल बुच इन्वेस्टमेंट मेनेजमेंट कंपनी ब्लेक स्टोन में वरिष्ठ सलाहकार है।


इस कंपनी की भारत में कई REITs में निवेश है। माधबी बुच ने अपने पति की कंपनी को फायदा पहुॅचाने के लिये काम किया। हिंडनबर्ग रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सेबी चीफ माधवी बुच और उनके पति धवल बुच बरमूडा/मॉरिशस फण्ड में निवेश कर रहे थे जिनके साथ गौतम अडाणी और उनके भाई विनोद अडाणी का संबन्ध था। सेबी की संदिग्ध भूमिका से छोटे निवेशकों के निवेश की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।


कार्पाेरेट को लाभ पहुॅचाने में मोदी सरकार की भूमिका:- मोदी सरकार ने पहली बार गैर सिविल सेवा की व्यक्ति माधबी पुरी बुच को सेबी का चेयरपर्सन बनाया। उन्होंने गौतम अडाणी समूह की कंपनियों को लाभ पहुॅचाने के लिये काम किया। सेबी चेयरमेन, अडाणी समूह और सरकार की सॉठगॉठ स्पष्ट दिखाई देती है। मोदी सरकार रीयल इस्टेट में इन्वेस्ट करने वाले बड़े उद्योगपतियों के अनुसार मनचाहे नियम बना रही है। मुंबई का धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट इसका उदाहरण है। 23000 करोड़ रूपये का यह प्रोजेक्ट महाराष्ट्र सरकार ने बगैर निर्धारित मापदण्डों और स्थापित बिडिंग प्रोसेस का पालन किये बगैर अडाणी समूह को दे दिया।  


सेबी चेयरपर्सन की नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी नही है। देश की वित्तीय व्यवस्था के इतने बड़े नियामक की नियुक्ति में प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रीपरिषद को ही चयन समिति बनाने का अधिकार है। इसलिये वे जिसे चाहें सेबी का चेयरपर्सन बना सकते है।

सेबी के चेयरपर्सन की नियुक्ति में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जैसी स्थायी समिति होनी चाहिए जो नियुक्ति की सिफारिश करे और शिकायत प्राप्त होने पर उनके खिलाफ कार्यवाही भी कर सके। Long term capital gain tax  का फायदा उठाने के लिए पहले REITs  यूनिट्स को 36 महीने तक रखना पड़ता था। उसके पहले बेचने पर आय अनुसार इनकम टैक्स लगता था। इस बजट में सरकार ने इस 36 महीने के Period को कम करके 12 महीने कर दिया। 


अर्थात- सरकार ने REITs को प्रमोट करने के लिये पूरी ताकत लगा दी। इस बात की जॉच होनी चाहिए कि भारत की REITs कंपनियों में किस-किस का पैसा लगा है और किसको इस LTCG पीरियड को 12 महीने करने वाले ऑर्डर से फायदा होगा। माधवी बुच का SEBI से कोई लेना देना नहीं था। प्राइवेट सेक्टर से इस पद पर नियुक्त होने वाली वो पहली चेयरमैन हैं। उनको सीधा सरकार ने बाहर से ला कर सेबी सदस्य और बाद में चेयरमैन बना दिया था।

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