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जल में देवी-देवताओं की मूर्तियों को इसलिए किया जाता है विसर्जित

 आज दस दिनी गणेशोत्सव का समापन है और अनंत चतुर्दशी मनाई जा रही है। गणेश विसर्जन हो या नवरात्रि ईश्वर की सुंदर मूर्तियों को पूजन के बाद विसर्जित करने का विधान हैं। ऐसा क्यों हैं? यह बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी। दरअसल पुराणों में वर्णित है कि जल को ब्रह्म स्वरूप माना गया है। सृष्टि की शुरुआत जल में हुई है, और भविष्य में संभवतः इसका अंत जल में ही होगा। जल बुद्घि और ज्ञान का प्रतीक है। जल में ही यानी क्षीरसागर में श्रीहरि का निवास है।


मान्यता है कि जब जल में देव प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है, तो देवी देवताओं का अंश मूर्ति से निकलकर वापस देवलोक में चला जाता है। यानी परम ब्रह्म में परमात्मा लीन हो जाते हैं। यही कारण है कि देवी और देवताओं की मूर्तियों और निर्मल को जल में विसर्जित किया जाता है।

जल में गणेश मूर्ति विसर्जित करने के बारे में एक अन्य कथा का भी उल्लेख पुराणों में मिलता है। कहते हैं जब महाभारत के रचियता वेद व्यास जी ने महाभारत की कथा गणेश जी को गणेश चतुर्थी से लेकर अनन्त चतुर्थी तक लगातार 10 दिन तक सुनाई थी।


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