इस साल 2 अगस्त को नाग पंचमी का पवित्र त्योहार मनाया जा रहा है। हमारे देश में नागों से जुड़े कई मंदिर हैं। लेकिन इनमें से कुछ मंदिर बहुत ही खास हैं। ऐसा ही एक नाग मंदिर केरल के अलाप्पुज्हा शहर से 37 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर का नाम मन्नारशाला नाग मंदिर है। यह मंदिर किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यहां एक नहीं दो नहीं बल्कि 30 हजार से भी ज्यादा नाग प्रतिमाएं हैं। यह मंदिर 16 एकड़ की भूमि पर फैला हुआ है। यहां हर तरफ नाग प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें बताने जा रहे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने जब इंद्रप्रस्थ राज्य बसाया था तो इसके पहले यहां पर एक घना वन था। जिसे खांडव वन भी कहा जाता था। इस स्थान पर कई भयंकर सर्प निवास किया करते थे। अर्जुन ने अपने अस्त्रों से इस वन को जलाकर भस्म कर दिया था। तब उस वन में रहने वाले सांप अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे थे। ऐसा बताया जाता है कि वहीं महाभंयकर विषधर सर्प यहां केरल में आकर बस गए थे।
नागराज और नागयक्षी को समर्पित मंदिर
केरल
का मन्नारशाला मंदिर नागराज और उनकी पत्नी नागयक्षी को समर्पित माना जाता
है। जो लोग निःसंतान होते हैं वे इस मंदिर में हल्दी से बनी नाग प्रतिमा
चढ़ाते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं।
इसके लिए पहले पति-पत्नी को मंदिर के तालाब में नहाकर गीले कपड़ो में ही
दर्शन करने के लिए जाना होता है। वहीं पति-पत्नी यहां एक कांसे का बर्तन
जिसे उरुली कहते हैं। उसे पलट कर रख देते हैं। संतान होने पर इस बर्तन को
सीधा करके उसमें अपनी इच्छा के अनुसार भेंट रखते
हैं।
मन्नारशाला मंदिर परिसर में ही साधारण-सा एक खानदानी घर है। जिसमें नम्बूदिरी परिवार के लोग रहते हैं। इस परिवार की बहू ही इस मंदिर में पूजा आदि करती हैं। यहां के लोग उन्हें अम्मा कह कर बुलाते हैं। शादी-शुदा होने के बाद भी वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दूसरे पुजारी परिवार के लोगों के साथ अलग कमरे में रहती हैं। माना जाता है कि इसी परिवार की एक स्त्री के गर्भ नागराज ने जन्म लिया था। उसी की प्रतिमा इस नाग मंदिर में स्थित है।
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