भोपाल: इस वर्ष सावन का पूरा महीना विशेष योगसंयोग में मनाया जा रहा है।रविवार फल द्वितीया से प्रारंभ सावन रविवार को रक्षा बंधन के साथ पूरा होगा। श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नाग देवता ही है।
सम्पूर्ण भारत विशेषकर देश के पर्वतीय प्रदेशों में नागपूजा अत्यंत
उत्साह व धार्मिक विधि विधान से मनाई जाती है।13 अगस्त शुक्रवार को
नागपंचमी पर्व हस्त नक्षत्र व साध्य योग में कल्कि जयंती के साथ मनाया
जाएगा। शुक्रवार को पंचमी तिथि दोपहर 1.42 बजे तक रहेगी। हस्त नक्षत्र शाम
7.58 बजे तक व साध्य योग शाम 6.48 बजे तक रहेगा। सामान्यतः नागपूजा प्रातः
काल मे ही की जाती है।
नागों का मूल पाताल लोक माना जाता
है।भोगवतीपुरम इसकी राजधानी के नाम से प्रसिद्ध है। धर्मशास्त्रीय गर्न्थो
में नागों का उदगम महर्षि कश्यप व उनकी पत्नी कद्रू से माना जाता है।
नाग पंचमी के दिन नाग नागिन के जोड़े को गोदुग्ध से स्नान कराने का विधान है।स्नान कराने के बाद नवीन वस्त्र व विविध पूजा सामग्री से महिलाएं व परिजन श्रद्धा पूर्वक नाग नागीन के जोड़े की पूजा करते है। मालवा में अनेक घरों में आज के दिन चूल्हे पर तवा नही चढ़ाया जाता है।घरों में दाल,बाटी व चूरमा भोग के रूप में बनाया जाता है। धूप ध्यान के साथ दाल बाटी का भोग भी नाग देवता को लगता है।
गाय का दूध ही पूजा में क्यों प्रयोग किया जाता हैं
गाय के दूध से स्नान कराने से नागों को दाहपीडा से छुटकारा मिलता है व
शीतलता प्राप्त होती है।मान्यता है कि गाय का दूध सर्प भय से मुक्ति भी
प्रदान करता है।इस विषय मे पुराणों में अनेक कथाएं व आख्यान भी मिलती है
जो इन तथ्यों की पुष्टि करती है।
नागों के चित्र की पूजा का ही है विधान
नागपंचमी को नागों का धार्मिक विधि से चित्रांकन किया जाता है! स्वर्ण, रजत,लकड़ी अथवा पवित्र मिट्टी के नाग बनाकर उनकी सविधि विविध पूजा उपचारों से पूजन करने की शास्त्र आज्ञा है।
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