पुत्र के दीर्घायु की कामना के निमित महिलाओं ने रविवार को माघ मास के चौथ का निर्जला व्रत रखा। शाम में गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर निकट के मंदिरों पर पूजन-अर्चन किया तथा पुरोहित से कथा श्रवण कर प्रदक्षिणा दी और अपने पुत्र की कुशलता की मन्नतें मांग विदा हुईं।
कुछ महिलाओं ने घर में ही काष्ठ के पवित्र आसन पर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा रख पूजन-अर्चन किया। चंद्रदोदय होने पर अर्घ्य अर्पित कर फलाहार किया।
नगर के बालेश्वर घाट, महावीर घाट पर दर्जनों की संख्या में महिलाओं ने रविवार की शाम गंगा स्नान कर निकट के मंदिरों में भगवान गणेश-लक्ष्मी की पूजन-अर्चन किया।
इसके बाद पुरोहित से कथा श्रवण किया। मान्यता है कि माघ महीने के चौथ का व्रत करने से पुत्र दीर्घजीवी होता है। ऐसा इस व्रत के कथा में भी प्रसंग है।
कुछ महिलाएं घर में काष्ठ के आसन्न पर गौरी-गणेश को स्थापित कर दुर्वा, धूप, नैवेद्य, फल-फूल आदि सामग्रियों से षोडोचार विधि से पूजन-अर्चन किया। इसके बाद स्वयं से कथा पढ़ीं और चंद्रोदय होने पर पुत्र के साथ चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित किया। इसके बाद फलाहार कीं।
सतयुग में हरिश्चंद्र के राज्य में इसी के प्रभाव से एक विधवा का पुत्र कुम्हार के आंवा में से सकुशल बच निकला था, तभी से पुत्र के दीर्घजीवी होने के लिए माघ व भादो मास का चौथ व्रत करने का प्रचलन हुआ। इस व्रत को करने से पुत्र के दीर्घायु के साथ ही अन्न-धन संपदा सभी में भगवान गणेश कृपा से वृद्धि होती है।
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