भगवान श्रीराम त्रेतायुग में जन्में थे। उनकी रचलित जन्मकुंडली में उच्च का मंगल सप्तम (पत्नी) भाव में था। जो कि मांगलिक दोष इंगित करता है। श्रीराम का विवाह इस दोष के कारण उच्च कुल में तो हुआ, लेकिन वे दाम्पत्य सुख से लगभग वंचित रहे। विवाह के बाद उन्हें वनवास हुआ और फिर सीता हरण के कारण विरह वियोग।
लग्न में उच्च के गुरु की शुभ दृष्टि के प्रभाव से निष्कलंकित सीता मिल तो गई, परंतु लव कुश के जन्म से पूर्व ही वह एक बार फिर माता सीता, श्रीराम से दूर हो गईं थी।
वर्तमान में भी मंगलदोष प्राचीन समय की तरह ही प्रभावी है। ज्योतिष के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मांगलिक है तो उसकी शादी किसी मांगलिक से ही की जानी चाहिए, इसके पीछे कई धारणाएं बनाई गई हैं।
वैसे अमूमन जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 9, 12वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मांगलिक होता है।
मांगलिक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण तरह निभाता है, कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व ही कर लेते हैं, नेतृत्व की क्षमता, उनमें जन्मजात होती है, ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परन्तु जब मिलते हैं तो पूर्णतः संबंध को निभाते हैं।
अति महत्वकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है परन्तु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते है, गलत के आगे झुकना इनकी पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते।
ये लोग उच्च पद, व्यवसायी, अभिभावक, तांत्रिक, राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर सभी क्षेत्रों में विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं।
आमतौर पर विवाह के समय लड़की और लड़के की कुंडली मिलाई जाती है। कुंडली में 36 गुण होते हैं और वर-वधू के जितने गुण मिल जाएं उतना अच्छा माना जाता है।
शादी के लिए कम से कम 18 गुण मिलना जरूरी होता है इससे कम गुण मिलना या 36 गुण मिलना सही नहीं माना जाता।
क्योंकि भगवान राम और माता सीता के 36 गुण मिले थे। लेकिन शादी के बाद सीताजी को रामजी का साथ बहुत कम मिला, उनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा।
चंद्र राशि से भी मंगल इन्हीं स्थानों में होता है तब भी कमोवेश मांगलिक दोष (चंद्र मंगली) माना जाता है। इन्हीं स्थानों पर यदि शनि और राहु हों या दूसरे व तीसरे भाव में भी हो तो उसका अशुभ प्रभाव भी विवाहित जीवन पर पड़ता है।
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