नई दिल्ली। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों पर प्रहार करते हुए कहा कि अगर भारत ने सैन्य विकल्प चुना होता तो गुलाम कश्मीर भी देश के अधीन ही होता।
उन्होंने यह भी कहा कि 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध तक भारत सरकार ने वायु सैन्य शक्ति का भरपूर इस्तेमाल नहीं किया। भारत ने सुरक्षा जरूरतों के लिए कभी व्यवहारिक रुख नहीं अपनाया।
एयरोस्पेस की सेमिनार में गुरुवार को एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने कहा कि 1947 में जब पाकिस्तानी सैन्य हमलावरों ने जम्मू-कश्मीर पर धावा बोला तब वायुसेना के परिवहन विमानों ने भारतीय सैनिकों की मदद की थी।
इन विमानों से युद्धक्षेत्र तक सैन्य साजोसामान पहुंचाए गए। मेरे विचार से जब एक सैन्य समाधान सामने था तब नैतिक आधार पर हम इसके शांतिपूर्ण समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र चले गए।
लेकिन संकट अब भी जारी है। गुलाम कश्मीर अभी भी हमें कांटे की तरह चुभ रहा है।
वायुसेना प्रमुख ने नेहरू-गांधी सरकारों की नीतियों पर हमले करते हुए कहा कि भारत सैन्य ताकत के इस्तेमाल का अनिच्छुक रहा।
खासकर वायुसेना के इस्तेमाल से हमेशा परहेज किया गया। फिर चाहे देश में पहले कई बार हुए विद्रोह या संघर्ष को ही क्यों न रोकना हो।
उन्होंने अफसोस जताया कि सन् 1962 में संघर्ष के डर से वायुसेना का न्यूनतम उपयोग हुआ। 1965 के संघर्ष में भी राजनीतिक कारणों से पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ वायुसेना की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया।
जबकि पाकिस्तानी वायुसेना पूर्वी पाकिस्तान से हमारे वायुसैनिक अड्डों, आधारभूत ढांचों, जमीन पर खड़े विमानों पर हमले कर रही थी। इस दौरान हमारा बहुत नुकसान हुआ लेकिन हमने जवाबी कार्रवाई नहीं की।
वायुसेना का समुचित इस्तेमाल 1971 के युद्ध में हुआ। तीनों सेनाओं के बेहतरीन तालमेल से बांग्लादेश की रचना हुई।
भारत में सुरक्षा का माहौल बिगड़ा हुआ है। क्षेत्र में संघर्ष को रोकने के लिए सैन्य शक्ति के तहत वायुसेना की शक्ति का इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। ताकि शांति और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
भारतीय वायुसेना में घातक हिंदुस्तान टर्बो ट्रेनर 40 (एचटीटी 40) बेसिक ट्रेनर विमान बड़े पैमाने पर शामिल किए जाएंगे।
इस विमान से पायलटों की ट्रेनिंग होगी। रक्षा सूत्रों का कहना है कि कम से कम ऐसे 70 विमान खरीदे जाने वाले हैं।
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