देहरादून। आपने टमाटर को पौधे पर देखा होगा। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि अब टमाटर पेड़ पर भी नज़र आएंगे। इसे लेकर आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में टमाटर पेड़ों पर लगाने का प्रयोग शुरू हो चुका है।
पेड़ में लगने के बाद एक या दो सीजन नहीं बल्कि दस से पंद्रह साल तक फल देगा। उत्तराखंड राज्य में भी जल्द ही इस तरह की खेती शुरू होने जा रही है।
उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी के वैज्ञानिकों ने ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैड में पाए जाने टमरैलो यानि सोलेनियम वैक्टम प्रजाति के टमाटर की खेती करने की तैयारी कर ली है। ये प्रजाति हमारे देश में पाए जाने वाले टमाटर की ही प्रजति है।
यह झाड़ीनुमा पेड़ हैं और इसकी खेती पहली बार 1996 में आस्ट्रेलिया में शुरू हुई थी। इसका पेड़ एक साल में फल देने को तैयार हो जाता है, जो 15 साल तक फलोत्पादन करता है।
टमरैलो जल्द बढ़ने वाला पेड़ है। इसकी ऊंचाई पांच मीटर तक जाती है और 15 से 20 सेंटीग्रेड तापमान इसके लिए जरूरी है। इसके लिए पानी की भी कम आवश्यकता होती है।
जलवायु के लिहाज से उत्तराखंड में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। इसका उत्पादन बीज व कटिंग के साथ ही टिशू कल्चर तकनीक से भी किया जा सकता है।
उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी के वैज्ञानिक सुमित पुरोहित इन दिनों टमरैलो की हाइड्रोपेानिक तकनीक से पौध तैयार करने में लगे हैं। प्रयोग के तौर पर इसकी खेती यहां कारगर होती दिख रही है। जल्द ही इसकी पौध काश्तकारों को उपलब्ध कराई जाएगी।
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