यूरोपियन यूनियन (EU) में ब्रिटेन रहे या नहीं, इसके लिए 23 जून को जनमत संग्रह होना है। सदस्य देशों द्वारा ब्रिटेन को बनाए रखने की कोशिशें अपने मकसद में पूरी होती नहीं दिख रही हैं। दूसरी तरफ शरणार्थियों के मसले पर भी सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में 28 देशों के इस समूह में विवाद गहरा गया है।
जर्मनी के चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा कि सभी सदस्य देश चाहते हैं कि ब्रिटेन संघ में बना रहे। पर कुछ देशों के लिए ब्रिटेन की मांगें स्वीकार करना मुश्किल है। हालांकि इस दिशा में प्रयास चल रहा है।
संघ में बने रहने के लिए ब्रिटेन की मांग है कि शरणार्थी नीति में बदलाव किया जाए। सामाजिक और कल्याणकारी याजनाओं में बदलाव किया जाए और आर्थिक प्रबंधन से जुड़ी नीतियों में बदलाव हो। प्रधानमंत्री डेविड कैमरन चाहते हैं कि जनमत संग्रह से पहले यूरोपीय यूनियन इसमें सुधार का वादा करे।
यदि कैमरन की मांगें मान ली जाती हैं तो वे लोगों से बने रहने के लिए मतदान करने की अपील करेंगे। हालांकि, फ्रांस, ग्रीस, बेल्जियम जैसे देशों ने उनकी मांग पर वीटो की चेतावनी दी है।
यूरोपियन यूनियन में शामिल होने के बाद भी ब्रिटेन ने साझा मुद्रा यूरो नहीं अपनाई। साथ ही अपना मुक्त बाजार रवैया जारी रखा और नीदरलैंड्स, स्वीडन जैसे कुछ अन्य देशों ने भी ऐसा किया।
ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने पर हो सकता है कि 28 देशों के ब्लॉक के कुछ अन्य देश भी इस राह चलें। चेक गणराज्य के प्रधानमंत्री बोहुस्लाव सोबोत्का ने कहा है कि ब्रिटेन के ईयू को छोड़ने से यूरोप में राष्ट्रीयता और अलगाववाद की एक लहर चल सकती है।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपने देश को ईयू के साथ बनाए रखने के लिए देश भर में दौरे कर रहे हैं। दूसरी ओर ब्रिटिश कैबिनेट ही इस मुद्दे पर विभाजित है। 17 सदस्य ईयू के साथ रहने तो पांच ब्रेक्जिट के पक्ष में हैं।
यहां तक की खुद कैमरन की कंजर्वेटिव पार्टी के सांसदों में 142 ईयू तो 120 ब्रेक्जिट चाहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन ईयू में बना रहेगा, लेकिन लंदन के मेयर जॉनसन के ब्रेक्जिट के पक्ष में प्रचार करने से ईयू विरोधी खेमे को काफी बल मिला है।
दुनियाभर में इन दिनों ब्रेक्सिट शब्द की खूब चर्चा है। ब्रेक्सिट (ब्रिटेन+एक्जिट) यानी ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से एक्जिट करना। इसकी वजह से बाजारों में असमंजस का माहौल बना हुआ है। ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन में बने रहने या नहीं बने रहने को लेकर होने वाले जनमत संग्रह को ब्रेक्सिट नाम दिया गया है।
दरअसल, ब्रेक्सिट ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का चुनावी वादा था ऐसे में अब ये जनमत संग्रह हो रहा है। हालांकि, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन में बने रहने के पक्ष में हैं।
यूरोप के कानूनों से ब्रिटेन को बिजनेस में रुकावटें पैदा हो रही हैं। ब्रिटेन से यूरोप को ज्यादा फायदा है, लेकिन यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन को कम फायदा है। ब्रेक्सिट होने यानी यूरोपियन यूनियन से अलग होने पर ब्रिटेन का यूरोप से आने वाले लोगों पर नियंत्रण होगा।
इसके अलावा ब्रिटेन में प्रवासी नागरिकों के अपने घर पैसे भेजने पर आंशिक रोक लगेगी। साथ ही ये भी एक कारण है कि यूरोप के पूर्ण एकीकरण में ब्रिटेन शामिल होना नहीं चाहता है।
ईयू अध्यक्ष डोनाल्ड टुस्क ने कहा है कि शरणार्थी संकट पर संघ के कदमों से ब्रिटिश जनता के ब्रेक्जिट के विचार मजबूत हुए हैं। टुस्क का मानना है कि 23 जून तक ईयू मिलकर इस संकट को हल करने के लिए जो कुछ भी करेगा, वह ब्रिटिश जनता के जनमत संग्रह पर असर डालेगा।
भारत के फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के महासचिव डॉक्टर ए दीदार सिंह के अनुसार, ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने पर भारत के लिए मुश्किल पैदा होंगी। इससे ब्रिटेन में काम कर रही कई भारतीय कंपनियों के लिए काफी अनिश्चितता का माहौल बनेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर-दिसंबर में अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान कहा था कि ब्रिटेन कई भारतीय कंपनियों के लिए यूरोपीय संघ में प्रवेश का रास्ता है।
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