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वास्तुशास्त्र में नवरात्र पूजन का महत्व

मां दुर्गा के नौ रूप नौ ग्रहों से जुड़े हैं और इस तरह हर ग्रह माता के किसी न किसी रूप का प्रतिनिधि ग्रह है। इन ग्रहों की शांति के लिए मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का पूजन विशेष फलदाई होता है।
नवरात्र यानी मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना। नवरात्र में हम मां दुर्गा के नौ रूपों की ही आराधना नहीं करते, बल्कि नारी शक्ति के उन विभिन्न् रूपों को नमन करते हैं, जो सृष्टि के आदि समय से इस संसार का संचालन कर रहे हैं।
सिंह पर सवार मां दुर्गा अपनी अष्ट भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, धनुष, तलवार, त्रिशूल और कमल धारण किए हुए भक्तों को भय मुक्त करती हुई और दुष्टों का दमन करती हुई नजर आती हैं। मां दुर्गा के इस रूप में दया, क्षमा, शांति, कांति, श्रद्धा, भक्ति, ममता, सहनशीलता, करुणा और अन्न्पूर्णा भी दिखायी देती हैं। यही सारे गुण भारतीय नारी के भी आभूषण हैं।
नवरात्र नारी के इसी शक्ति रूप को नमन करने का महापर्व है। वास्तुशास्त्र में भी नवरात्र पूजा की महिमा का वर्णन किया गया है। अगर नवरात्र पूजा विधिवत की जाए तो वास्तु के कई दोषों की शांति होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार माता दुर्गा के नौ रूप नौ ग्रहों से संबंध रखते हैं।
आशय यह कि प्रत्येक ग्रह माता के किसी न किसी रूप का प्रतिनिधि ग्रह है और प्रत्येक ग्रह का संबंध किसी दिशा विशेष से है। वास्तुशास्त्र दिशाओं के ज्ञान और उनके शुभ-अशुभ प्रभावों पर विस्तृत व्याख्या करता है।
उल्लेखनीय है कि नवदुर्गा के इन रूपों की विधिवत आराधना न सिर्फ माता के उस रूप के प्रतिनिधि ग्रह की शांति करती है बल्कि घर में अगर उस ग्रह से संबंधित दिशा में कोई वास्तु दोष है तो इस आराधना से उस दोष की भी काफी हद तक शांति होती है।
वास्तुशास्त्र में ईशान यानी उत्तर-पूर्व को पूजा स्थल के लिए सर्वोत्तम स्थान बताया गया है। आप नि:संकोच इस दिशा में पूजा स्थल या नवरात्र के लिए कलश स्थापना कर सकते हैं। लेकिन पूजा के उत्तम फल और वास्तुशांति के लिए (जैसा कि हमने ऊपर तालिका में वर्णित किया है) देवी-देवता से संबंधित दिशा में ही पूजा या कर्मकांड किया जाए तो वह पूजा अधिक फलदाई होती है।
जिस प्रकार हम दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं, उसी प्रकार नवरात्र में भी मां दुर्गा की मूर्ति स्थापना की जा सकती है, लेकिन मूर्ति सवा पांच इंच से बड़ी न हो। ऐसे भी बहुत से लोग होते हैं, जो घर में पूजा-स्थल नहीं बनाते या नहीं बना पाते, ऐसे लोग भी अगर नवरात्र के नौ दिनों में ईशान में पूजा-स्थल बनाकर माता दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं, तो उनका पूजन फलदाई होता है।
बहुत से नि:संतान दंपती माता वैष्णो देवी यात्रा संतान प्राप्ति की आशा से जाते हैं, तो कुछ घर की सुख-शांति और समृद्धि के लिए यात्रा करते हैं। किंतु आप अगर किसी कारणवश अपनी इन कामनाओं की पूर्ति के लिए यात्रा नहीं कर पा रहे हैं, तो नवरात्र पर की गई विधिवत पूजा भी आपको ऐसी यात्रा का फल प्रदान कर सकती है।

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