चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से बासंती नवरात्र की शुरुआत होने के साथ चंद्र नवसंवत्सर का आरंभ हो जाता है। श्रीमद् दैवी भागवत में इस दिन सृष्टि का आरंभ हुआ था, तभी से इस दिन विशेष पर त्योहार तथा उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है।
चूंकि सृष्टि के आरंभ का प्रथम दिन होने से तथा नवरात्रि का पहला दिन होने से मानव जीवन के लिए यह धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की दृष्टि से साधना, आराधना उपासना की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
यही कारण है कि फल की इच्छा रखने वाले भक्त साधक उपासक आराधक नवदुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए अलग-अलग प्रकार से आराधना करते हैं यही नहीं कामना भेद के अनुसार गुप्त साधना भी इस कालखंड में होती है।
शास्त्रीय अभिमत के अनुसार यदि कोई विशिष्ट संयोग हो तो आराधना का विशिष्ट फल भी प्राप्त होता है। मनोवांछित कामना को सिद्ध करने के लिए देवी तंत्र में अलग-अलग उपासनाएं बताई गई हैं जो इस प्रकार है- यश, ऐश्वर्य, धन, संतान, वैभव, प्रगति, सफलता, भूमि-भवन, व्यापारिक सफलता, राजनैतिक सफलता, उच्च पद की प्राप्ति, सामाजिक प्रतिष्ठा पारिवारिक सुख शांति, सुख समृद्धि, बल, बुद्धि, विद्या आदि प्राप्ति के लिए अलग-अलग साधनाएं है जो इस प्रकार है-
महालक्ष्मी की कृपा के बिना ऐश्वर्य की कल्पना नहीं की जा सकती है माता की कृपा प्राप्त करने के लिए महालक्ष्मी स्तोत्र, बीज मंत्र, मध्य रात्रि की साधना एवं विशिष्ट अनुभूत प्रयोग के माध्यम से कृपा प्राप्त की जा सकती है। जिसमें महालक्ष्मी मंदिर में अनार रस के द्वारा महालक्ष्मी का अभिषेक एवं चावल मिश्रित तथा श्वेत चमकीले वस्त्र का अर्पण करने से माता की कृपा ऐश्वर्य के रूप में प्राप्त होती है।
बिना धन सब सूना अत: धन की प्राप्ति के लिए दशविध लक्ष्मी की कृपा के लिए स्त्रोत पाठ के अलावा मंत्र, यंत्र, तंत्र के माध्यम से धन लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सकती है। जिसमें लक्ष्मीजी की एकाक्षरी बीज मंत्र 'ॐ श्रीं श्रियैय नम:", ॐ महालक्ष्म्यैय नम:", 'ॐ ह्रीं हिरण्यवर्णायै नम:" (11 माला) मंत्र द्वारा तथा कनकधारा स्त्रोत पाठ की यथा संख्या (5 या 21) आवृति करने से श्री यंत्र के सामने बैठकर विधिवत पूजा के द्वारा उक्त मंत्र पाठ करने से आर्थिक प्रगति होती है।
श्रीमद् दैवीय भागवत् में मनोवांछित संतान की प्राप्ति के लिए नवचंडी अनुष्ठान का विधान भी बताया गया है,जिसके माध्यम से योग्य संतान प्राप्त की जा सकती है।
दैवीय तंत्र में माता भुवनेश्वरी की कृपा प्राप्त करने के लिए भुवनेश्वरी स्त्रोत के पाठ यथा श्रद्धा करने से इच्छित भूमि भवन की प्राप्ति होती है।
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