मेरठ. कौन कहता है कि गधे की कीमत नहीं होती, जरूरत है तो बस उन्हें एक बार मेले में उतारने की। जी हां, कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर गढ़मुक्तेश्वर में गधों का मेला लगा। यहां उनकी खूब बोली लगी। इस मेले में एक लाख रुपए से ज्यादा कीमत में भी गधे बिके। इस बार मेले में जयकिशन का गधा सवा लाख रुपए में बिका। इस गधे की खासियत उसकी नस्ल है। जयकिशन का कहना है कि गधे की बोली उसकी कद काठी और उसकी नस्ल देखकर लगाई जाती है। इस मेले में गधों की 10 हजार रुपए से लेकर सवा लाख रुपए तक की बोली लगी।
गढ़ गंगा का मेला लाखों श्रद्धालुआें की आस्था का केंद्र है। साथ ही इस मेले में गधे-घोड़ों की खरीदारी भी काफी होती है। इस मेले में दूर दराज से आए कुम्हार बिरादरी के लोग गधे और खच्चर के अलावा घोड़ा या घोड़ी खरीदते हैं। इस मेले में अपने गधों को लेकर पहुंचे उनके मालिकों को उम्मीद रहती है कि उनके गधों को अच्छी कीमत मिल जाएगी। गधों के नाम भी काफी दिलचस्प होते हैं। ज्यादातर गधों के नाम उनके मालिकों ने किसी फिल्म स्टार या खिलाड़ी के नाम पर रखे थे। मेले में मौजूद रवि के गधे का नाम जहां 'धोनी' था तो फूलसिंह के गधे का नाम 'शाहरूख'। धर्मपाल ने अपने गधे का नाम 'वीरू' रखा हुआ था तो संतपाल ने अपने गधे का नाम सन्नी बताया। गधे के मालिकों का कहना है कि इस मेले में गधे बेचने और खरीदने का काम बड़ी संख्या में होता है। उनके गधे को दाम ज्यादा मिलें, इसीलिए काफी पहले से तैयारी करनी पड़ती है।
मेले में गधा खरीदने पहुंचे हरपाल और धर्मेंद्र ने बताया कि उनकी बिरादरी में जब किसी की शादी होती है तो इस मेले से शादी करने वाले युवक एक गधा जरूर खरीदकर अपने घर ले जाता है। ये परपंरा उनके पूर्वजों के समय से चली आ रही है। उनके मुताबिक, र्इंट भट्टों पर काम करने वाले मजदूर भी इसी मेले से गधे और खच्चर खरीदकर ले जाते हैं। वहीं, गढ़ निवासी कृपाल ने बताया कि इस मेले में तीन दिन में ही गधों की खरीद-फरोख्त से लाखों रुपए का कारोबार होता है। मेले में आए लोगों का कहना है कि गधों की इतनी नस्ल कहीं और एक साथ देखने को नहीं मिलती हैं। इस मेले में दूर-दूर से लोग गधों को खरीदने आते हैं।
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