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‘भारत और पाकिस्तान में युद्ध हुआ तो परमाणु संघर्ष का खतरा

वाशिंगटन : अमेरिका के विचारकों के एक समूह ने कहा है कि सामरिक परमाणु हथियारों पर पाकिस्तान की निर्भरता ने भारत-पाक परमाणु संघर्ष का खतरा बढ़ा दिया है और सबसे खतरनाक बात यह है कि 2008 के मुंबई आतंकी हमलों की पुनरावृत्ति जैसी घटना किसी विनाश की तरफ ले जा सकती है।
खुफिया विश्लेषण समूह और थिंक टैंक ‘स्ट्रैटफोर’ ने अपने नवीनतम विश्लेषण में कहा, ‘भारत-पाकिस्तान संघर्ष की स्थिति में बहुत कुछ दांव पर होगा।’ स्टिमसन सेंटर के माइकल क्रेपोन ने अपने नवीनतम लेख में कहा कि एक और टकराव की स्थिति में परमाणु खतरा काफी बढ़ जाएगा।
स्ट्रैटफोर ने अपने विश्लेषण में कहा, ‘पाकिस्तान के सैन्य नेता इन दलीलों से बेअसर लग रहे हैं कि पारंपरिक युद्ध योजनाओं के साथ सामरिक परमाणु हथियारों को मिलाना सही नहीं है।’ इसमें कहा गया, ‘सामरिक परमाणु हथियारों पर पाकिस्तान की निर्भरता से उपमहाद्वीप में भी विनाशकारी परमाणु टकराव का खतरा बहुत बढ़ जाता है जिससे या तो एक वास्तविक या परोक्ष आक्रमण की स्थिति में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की क्षमता बढ़ सकती है।’ 
स्ट्रैटफोर ने कहा, ‘किसी भी संभावित भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अब खतरा कहीं ज्यादा है।’ लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डेविड डब्ल्यू बर्नो और डॉ नोरा बेनसहेल ने एक संयुक्त लेख में लिखा, ‘2008 में मुंबई आतंकी हमले जैसी घटना की पुनरावृत्ति होने पर विनाशकारी स्थिति पैदा हो सकती है।’ उन्होंने कहा कि मुंबई जैसा हमला होने पर सैन्य बल का इस्तेमाल करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने पूर्ववर्तियों की तरह चुप नहीं बैठेंगे।
बर्नो और बेनसहेल ने कहा कि अमेरिका को भी दोनों पक्षों के वर्तमान एवं पूर्व सैन्य एवं असैन्य नीति नियंताओं से ऐसे द्विपक्षीय संबंधों का विकास करने के लिए कहना चाहिए जो संकट की अगली स्थिति टालने में महत्वपूर्ण साबित हों। उन्होंने कहा कि भारत एवं पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध से दुनिया नाटकीय रूप से बदल जाएगी।
दोनों ने लिखा, ‘युद्ध और विस्फोट से होने वाली क्षति, लाखों लोगों की संभावित मौत और केवल कुछ ही हथियारों में विस्फोट से पर्यावरण को पहुंचने वाली तबाही के सामने कोई भी दूसरी वैश्विक समस्या एकाएक बौनी पड़ जाएगी।’ क्रेपोन ने कहा कि ‘बढ़ते परमाणु खतरे के कारण भारत-पाकिस्तान के संबंधों में गतिरोध से कोई राहत नहीं है’ और मोदी को दोनों देशों के बीच पर्दे के पीछे की बातचीत में नयी उर्जा भरकर शांति वार्ता का नेतृत्व करना चाहिए।
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