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विरोध : अरुंधति रॉय के बाद अब कुंदन शाह और सईद मिर्जा ने लौटाए राष्ट्रीय पुरस्कार

नई दिल्ली। देश में बढ़ती असहिष्णुता लेकर लेखकों-साहित्यकारों को विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा। इस सूची में ताजा नाम मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय का शामिल हुआ है। अरुंधति ने गुरुवार को कहा कि वैचारिक क्रुरता के विरूद्ध राजनीतिक आंदोलन में शामिल होकर वे अपना नेशनल अवार्ड लौटाते हुए गर्व अनुभव कर रही हैं।
बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय के बाद अब बॉलीवुड फिल्मकार कुंदन शाह और सईद मिर्जा ने भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वापस करने का ऐलान किया है। नामी-गिरामी लेखकों-साहित्यकारों और फिल्मकारों द्वारा देश में ‘बढ़ती असहिष्णुता’ के खिलाफ अपने पुरस्कार और सम्मान लौटाए जाने का विरोध तेज हो गया है।
बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय ने आज अपना राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने का ऐलान किया। उन्हें 1989 में फिल्म ‘इन विच एन्नी गिव्स इट दोज वन्स’के लिए बेस्ट स्क्रीनप्ले का नेशनल अवॉर्ड मिला था।
राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ बनाने वाले कुंदन शाह ने कहा, आज के माहौल में नेशनल फिल्म अवार्ड जीतने वाली ‘जाने भी दो यारों’ बनाना नामुमकिन है... एक अंधकार-सा बढ़ता जा रहा है, और इससे पहले कि इस अंधकार की स्याही पूरे देश में छा जाए, हमें आवाज बुलंद करनी होगी... यह कांग्रेस या बीजेपी की बात नहीं, क्योंकि हमारे लिए दोनों एक जैसे हैं... मेरा सीरियल ‘पुलिस स्टेशन’ कांग्रेस ने बैन किया था...

उधर, ‘अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ के निर्देशक सईद मिर्जा ने भी असहिष्णुता के खिलाफ अपना अवार्ड वापस करने का ऐलान किया है। सईद मिर्जा को ‘मोहन जोशी हाजिर हो’ और ‘नसीम’ फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गौरतलब है कि इन दोनों दिग्गजों से पहले दीपांकर बनर्जी, निष्ठा जैन तथा आनंद पटवर्धन समेत 11 अन्य फिल्मकार भी अपने अवार्ड वापस कर चुके हैं।
उधर, अरुंधति ने कहा कि पूरी जनता, लाखों दलित, आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई आतंक में जीने को मजबूर हैं। उन्हें हमेशा यह डर रहता है कि न जाने कब-कहां से हमला हो जाए। उन्होंने कहा कि असहिष्णुता के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन में जुडऩे में वो फक्र महसूस करती हैं। बीफ बैन, अल्पसंख्यकों पर हमले और साहित्यकारों की आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है, जो कि बेहद शर्मनाक है।
रॉय ने कहा कि उन्हें खुशी है कि वो राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा कर साहित्यकारों, शिक्षाविदों के साथ जुड़ गई हैं, जो मौजूदा सरकार की चुप्पी का खुला विरोध कर रहे हैं। साहित्यकारों का विरोध ऐतिहासिक और अभूतपूर्व है। पुरस्कार लौटाने को लोग राजनीति से प्रेरित मान सकते हैं, लेकिन उनको अपने आप पर फक्र है। अरुंधति ने कहा कि उन्होंने 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार को लौटा दिया था, जब कांग्रेस सत्ता में थी।
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