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करवा चौथ इस बार रोहिणी नक्षत्र में, बढेगा पति-पत्नी में प्रेम

30 अक्टूबर यानी शुक्रवार को सुहागिनों का करवा चौथ का व्रत है। इस बार करवा चौथ व्रत शु्क्रवार और रोहिणी नक्षत्र में पड रहा है। इस विशेष संयोग में व्रत रखने वाली सुहागिनों का सुहाग तो अटल रहेगा ही, पति का आकर्षण भी उनके प्रति बढ जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नक्षत्र रोहिणी भी शाम 4:57 तक है। रोहिणी नक्षत्र होने के कारण पति पति के संबंधों में जहां मिठास घुलेगी वहीं एक दूसरे के प्रति लगाव भी धीरे धीरे बढता जायेगा।

-विशेष संयोग में आया करवाचौथ व्रत -30 अक्टूबर दिन शुक्रवार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि सुबह 8:25 तक रहेगी। 

- सुबह 8:25 के बाद चतुर्थी तिथि लगेगी जो सुबह 5:26 मिनट तक रहेगी। 

-रोहिणी नक्षत्र शाम 4:57 मिनट तक है। 

-चंद्रमा वृषभ राशि में सुबह 4:21 तक रहेगा। 

-30 अक्टूबर को ही चतुर्थी तिथि का क्षय भी हो रहा है। 

-करवाचौथ पूजन का समय शाम 6:02 से शाम 07:18 तक है। 

पौराणिक काल का करवाचौथ का व्रत -- 


भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने करवाचौथ का व्रत रखा था। मान्यता है कि इसी करवाचौथ व्रत से पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय मिली थी। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को दिन भर निर्जल व्रत रखने के बाद, शाम को चंद्रमा को जल का अर्घ्य देने के साथ व्रत संपन्न होता है। इस दिन सिर्फ चंद्रमा की ही पूजा नहीं होती। बल्कि करवाचौथ को शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय भी पूजा की जाती है। शैलपुत्री पार्वती ने भी शिव जी को इसी प्रकार के कठिन व्रत से पाया था। 

इस दिन गौरी पूजन से जहां महिलायें अखंड सुहाग की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित कन्या, सुयोग्य वर पाने की प्रार्थना करती हैं। द्वापर युग में एक बार अर्जुन, वनवास के दौरान नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गये थे। जब कई दिनों तक अर्जुन वापस नहीं आये, तो द्रौपदी को चिंता हुई। तब कृष्ण जी ने द्रौपदी से न सिर्फ करवाचौथ व्रत रखने को कहा बल्कि शिव द्वारा पार्वती जी को जो करवाचौथ व्रत की कथा सुनाई गई थी, उसे स्वयं द्रौपदी को सुनाया था।

मान्यता है कि जिन दंपत्तियों के बीच छोटी छोटी बात को लेकर अनबन रहती है, करवाचौथ व्रत से आपसी मनमुटाव दूर होता है। करवाचौथ में चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा मन का कारक है। सारे रिश्ते नाते भी इसी मन की डोर से बंधे हैं। 
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