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फूल, अगरबत्‍ती से नहीं जूतों से इबादत करते हैं लोग, कब्र को जूतों से पीटकर पूरी करते हैं मन्‍नत

ये कैसा मकबरा! यहां फूलों से इबादत नहीं, जूते मारने से यात्रा होती है शुभ
हमारे देश में सभी धर्मों का एक सा सम्‍मान और आदर किया जाता है और इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं यहां के मकबरे. इन मकबरों पर हर धर्म के लोग आते हैं और मन्‍नत मांगते हैं और इसके बदले में वे लोग मकबरों पर फूल और चादर चढ़ाते हैं, लेकिन एक ऐसा भी मकबरा हैं जहां आकर लोग जूते मारते हैं.
वैसे भी किसी व्‍यक्ति के मरने के बाद चाहे वह अच्‍छा हो या बुरा, लोग उसे श्रद्धांजलि देने के लिए फूल ही चढ़ाते हैं, लेकिन उत्‍तर प्रदेश में एक ऐसा भी शख्‍स हुआ है जिसकी कब्र पर फूल नहीं चढ़ाए जाते. इस कब्र पर लोग जूते मारते हैं. ये कब्र भोलू सैय्यद की.
भोलू सैय्यद के मकबरे पर लोग आकर उसकी जूतों से पिटाई करते हैं. यहां लोग फूल, अगरबत्‍ती से नहीं बल्कि जूतों से इबादत करते हैं और कब्र को जूतों से पीटकर मन्‍नत पूरी करते हैं.
यूपी में इटावा जिले से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर इटावा-बरेली राजमार्ग पर है भोलू सैय्यद का यह 500 साल पुराना मकबरा. माना जाता है कि एक बार इटावा के बादशाह ने अटेरी के राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. युद्ध के बाद में इटावा के बादशाह को पता चला कि इस युद्ध के लिए उसका दरबारी भोलू सैय्यद जिम्मेदार था.
इससे नाराज बादशाह ने ऐलान किया कि सैय्यद को इस दगाबाजी के लिए तब तक जूतों से पीटा जाए जब तक कि उसकी मौत न हो जाए. सैय्यद की मौत के बाद से ही उसकी कब्र पर जूते मारने की परंपरा चली आ रही है.
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इटावा-बरेली मार्ग पर अपनी तथा परिवार की सुरक्षित यात्रा के लिए सैय्यद की कब्र पर कम से कम पांच जूते मारना जरूरी है. भोलू सैय्यद की कब्र पर जूते-चप्पल मारकर वहां से गुजरने वाले यात्री सुरक्षित यात्रा के लिए इबादत करते हैं.
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