उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले का गांव इचावला में कोई ऐसा शख्स नहीं है जो पढ़ या लिख सकता हो. गांव के कुछ लोग जो थोड़ी बहुत उर्दू जानते हैं. आपको जानकर ये भी हैरानी होगी कि इस गांव में किसी को चिट्ठी पढ़ाना हो या मोबाइल में कांटैक्ट्स ढू़ढ़ना हो तो दूसरे गांव जाना पड़ता है. इतना ही नहीं यहां के लोगों ने मोबाइल में अपने रिश्तेदारों के नाम भी अजीबो गरीब तरीके से सेव कर रखा है. जैसे मामा को फोन आया हो तो उसके लिए अलग चिन्ह है और अगर किसी और रिश्तेदार का फोन आया है तो उसके लिए अलग चिन्ह सेव किया गया है.
एनबीटी में छपी खबर के मुताबिक इस गांव की आबादी 14 सौ है जिसमें 700 लोग वोट डालने के लिए रजिस्टर्ड हैं. वहीं इस गांव में 2 बच्चे 8 वीं तक पास हैं और वही सबसे ज्यादा पढ़े लिखे हैं. लेकिन ये बच्चे आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर चले गए हैं इसलिए उनका सहारा भी नहीं है.
इतना ही नहीं स्कूल क्या होता है इस गांव की लड़कियां जानती ही नही हैं. गांव के लोग बताते हैं कि यहां कभी स्कूल खुलेगा ये हम अब सपने में नहीं सोचते हैं. गांव का रास्ता इतना खराब है कि लड़कियां घर से बाहर जाने में डरती हैं.
वहीं एक बुजुर्ग बताते हैं कि उनकी याद में ऐसा कोई शख्स न पहले था और न अब है पढ़ा-लिखा रहा हो. गांव के सभी घर कच्चे हैं और हर साल बाढ़ आने पर डूब जाते हैं. कुछ ही लोगों के पास राशनकार्ड हैं जो बाढ़ में ही बह गए हैं. इस गांव की हालत पुराने जमाने की कबिलियाई जीवन की याद दिलाते हैं. जो देश और समाज से पूरी तरह कट हुए हैं.
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