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मध्य प्रदेश में डायनोसोरों के अंडे देने की दो नयी जगहें मिलीं

जीवाश्मों के जुरासिक खजाने से समृद्ध मध्य प्रदेश के धार जिले में खोजकर्ताओं के एक समूह ने डायनोसोरों के अंडे देने की दो नयी जगहें ढूंढ निकालने का दावा किया है.
खोजकर्ताओं के मुताबिक, इन जगहों में डायनोसोर के अंडों के करीब साढ़े छह करोड़ साल पुराने दुर्लभ जीवाश्म जमा हैं.
खोजकर्ता समूह ‘मंगल पंचायतन परिषद’ के प्रमुख विशाल वर्मा ने बताया, ‘हमें इंदौर से लगभग 125 किलोमीटर दूर धार जिले में डायनोसोरों के अंडे देने की दो नयी जगहें मिली हैं. इन जगहों पर डायनोसोरों के बनाये घोंसले करीब साढ़े छह करोड़ साल पहले हुई भौगोलिक उथल-पुथल के बाद चट्टानों के नीचे दब गये थे.’
उन्होंने बताया कि धार जिले के बाग क्षेत्र के पास स्थित ये दोनों जगह एक-दूसरे से करीब आठ किलोमीटर के फासले पर हैं. इनमें से हरेक जगह में डायनोसोरों के कम से कम 15 अंडों के जीवाश्म हो सकते हैं. इन जीवाश्मों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिये दोनों स्थानों पर खोज अभियान जारी है.
वर्मा ने कहा, ‘इन जगहों के विस्तृत अध्ययन से डायनोसोरों के अंडे देने के तरीके के बारे में नयी जानकारी मिल सकती है. इससे यह भी पता चल सकता है कि क्या डायनोसोर अंडे देने के लिये एक ही जगह का बार-बार इस्तेमाल करते थे.’ 
वर्मा ने बताया कि उनका खोजकर्ता समूह धार जिले में पिछले एक दशक के दौरान डायनोसोरों के अंडे देने की दो जगहें पहले ही खोज चुका है. नतीजतन अब इस जिले में ऐसी दुर्लभ जगहों की संख्या बढ़कर चार हो चुकी है.
‘मंगल पंचायतन परिषद’ ने पहली बार दुनिया भर का ध्यान तब खींचा था, जब इसने वर्ष 2007 के दौरान धार जिले में डायनासोरों के करीब 25 घोंसलों के रूप में बेशकीमती जुरासिक खजाने की चाबी ढूंढ निकाली थी. इन घोंसलों में डायनोसोरों के अंडों के जीवाश्म बड़ी तादाद में मिले थे.
प्रदेश सरकार धार जिले में करीब 108 हेक्टेयर के उस क्षेत्र को राष्ट्रीय डायनोसोर जीवाश्म उद्यान के रूप में विकसित करने की परियोजना पर काम कर रही है, जहां इन जीवों ने सहस्त्राब्दियों पहले अपने घोंसले बनाये थे.
वर्मा ने बताया कि धार जिले में डायनोसोर के अंडों जो जीवाश्म अब तक मिले हैं, वे इस विलुप्त जीव के सौरोपॉड परिवार से ताल्लुक रखते हैं. इस प्रजाति के डायनोसोर शाकाहारी होते थे.
उन्होंने कहा, ‘हमारे अध्ययन के मुताबिक ये डायनोसोर तत्कालीन रेतीले इलाकों में अंडे देने के लिये दूरस्थ क्षेत्रों से आते थे. वे आमतौर पर 20 से 30 फुट ऊंचाई के होते थे.’ 
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