पश्चिम बंगाल
की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब पहली बार 18 सितंबर को नेताजी सुभाष
चंद्र बोस से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने का एलान किया, तो लोगों के मन
में एक उम्मीद थी कि अब नेताजी की मौत का रहस्य खुल जायेगा. लेकिन, 64
फाइलों के सार्वजनिक होने से सवालों के जवाब मिलने के बजाय कई नये सवाल
खड़े हो गये. यही वजह है कि ‘नेहरू एंड बोस : पैरालेल लाइव्स’ के लेखक
रुद्रांशु मुखर्जी ने ममता बनर्जी की इस कवायद को खोदा पहाड़ निकली चुहिया
की संज्ञा दी है.
मुखर्जी लिखते हैं कि नेताजी ने अपने जीवन काल में सबको हैरान किया. 1930 के दशक में कांग्रेस में महात्मा गांधी का वर्चस्व खत्म कर सबको चौंकाया, तो 1941 में 24 घंटे उनके घर के बाहर पहरा दे रहे पुलिसकर्मियों को चकमा देकर कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित अपने आवास से भाग गये. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई कि वह कब अफगानिस्तान के काबुल और जर्मनी के बर्लिन पहुंच गये. फिर सिंगापुर रेडियो से ‘आइ एम सुभाष स्पीकिंग’ का संदेश देकर लोगों को चौंकाया.
मुखर्जी लिखते हैं कि नेताजी ने अपने जीवन काल में सबको हैरान किया. 1930 के दशक में कांग्रेस में महात्मा गांधी का वर्चस्व खत्म कर सबको चौंकाया, तो 1941 में 24 घंटे उनके घर के बाहर पहरा दे रहे पुलिसकर्मियों को चकमा देकर कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित अपने आवास से भाग गये. किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई कि वह कब अफगानिस्तान के काबुल और जर्मनी के बर्लिन पहुंच गये. फिर सिंगापुर रेडियो से ‘आइ एम सुभाष स्पीकिंग’ का संदेश देकर लोगों को चौंकाया.
आजादी के नायक 1945 के बाद कभी सामने नहीं आये. रुद्रांशु कहते हैं कि
इतिहासकार मानते हैं कि ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नताजी की मृत्यु
हो गयी. लेकिन, उनके समर्थकों ने कभी इस खबर पर विश्वास नहीं किया. उनका
मानना था कि नेताजी भूमिगत हो गये हैं और उचित समय पर प्रकट होंगे. इसके
बाद तरह-तरह की कहानियां गढ़ी गयीं. आजादी के लंबे अरसे बाद नेताजी की मौत
का रहस्य सामने लाने की मांग उठी, तो सरकारों ने विदेश नीति का हवाला देते
हुए इस मांग को मानने से इनकार कर दिया.
ममता बनर्जी ने 64 फाइलों को सार्वजनिक किया, लेकिन कोई ठोस तथ्य
सामने नहीं आया, जैसा कि लोगों को उम्मीद थी. नेताजी की मृत्यु का सच भी
उजागर नहीं हुआ. 12 हजार से अधिक पन्नों की फाइलों में कुछ फाइल ऐसे हैं,
जिसमें नेताजी के संबंध में आइबी की साप्ताहिक रिपोर्ट (1946 के शुरुआत तक
की) हैं. कुछ खत हैं, जो शरत बोस को नेताजी की कथित विधवा एमिली ने लिखी.
लक्ष्मी स्वामीनाथन की वापसी और आजाद हिंद फौज के सैनिकों से जुड़ी कुछ
फाइलें भी हैं.
रुद्रांशु कहते हैं कि जिन फाइलों के सार्वजनिक होने से नेताजी से
जुड़े तमाम सच सामने आने की उम्मीद थी, उसने कई सवाल खड़े कर दिये हैं.
सिर्फ एक नया तथ्य सामने आया है कि तृणमूल कांग्रेस की भूतपूर्व सांसद
कृष्णा बोस के पति शिशिर बोस के खतों की वर्ष 1972 तक आइबी ने निगरानी की,
क्यों? रुद्रांशु कहते हैं कि जब फाइलों में कोई महत्वपूर्ण जानकारी थी ही
नहीं, तो इन्हें गोपनीय क्यों रखा गया? ममता ने क्यों इसे सार्वजनिक किया?
रुद्रांशु कहते हैं कि नेताजी के बारे में सच उजागर करना ममता बनर्जी का
उद्देश्य नहीं है. ऐसा होता, तो बहुत पहले फाइलें सार्वजनिक हो जातीं.
0 comments:
Post a Comment