एमपी अज़ब है-सबसे ग़ज़ब है. उक्ति मध्यप्रदेश के मंडला से नैनपुर
होकर जबलपुर और बालाघाट की ओर जाने वाली ट्रेनों को देखने पर सटीक बैठती
है. इन ट्रेनों का नज़ारा देखकर आप हैरत में पड़ जाएंगे कि एशिया महाद्वीप
की सबसे पुरानी और सबसे बडी नैरोगेज रेल लाईन आज भी अंग्रेजी हुकूमत की
यादें ताजा कर देती हैं. हैरान कर देने वाली बात तो यह कि नैनपुर से जबलपुर
के बीच पिंडरई गांव में महज़ आधा किलोमीटर में एक नहीं बल्कि दो स्टेशन
हैं, जिसके चलते इस स्टेशन का नाम गिनीज बुक आफ वल्ड रिकार्ड में दर्ज है.
इतना ही नहीं जहां स्टेशन नहीं है वहां भी सवारी इन ट्रेनों को हाथ देकर
रोक लेती हैं.
ट्रेन से उतरकर ड्रायवर बंद करता है फाटक
मंडला के महराजपुर
स्टेशन से ट्रेन छूटने के बाद ड्राईवर को जैसे ही रेलवे की क्रॉसिंग नजर
आती है वैसे ही, ट्रेन की रफ्तार थम जाती है. इसके बाद ट्रेन का सेकेंड
ड्राईवर उतरकर पहले क्रासिंग का गेट बंद करता है और ट्रेन को निकालकर
क्रासिंग का गेट खोल देता है. यह सिलसिला पिछले कई सालों से चला आ रहा है.
मंडला से नैनपुर के बीच करीब आठ पड़ते हैं, लेकिन हैरत की बात यह है कि
किसी भी क्रासिंग फाटक पर रेलवे का कोई कर्मचारी तैनात नहीं है, हर
क्रासिंग में ट्रेन रूकती है फिर ड्राईवर उतरकर पहले गेट बंद करता है और
ट्रेन को निकालकर गेट खोलता है, जिसके चलते पचास किलोमीटर का सफर तय करने
में घंटों का समय जाया होता है.
गिनीज़ बुक में इसलिए दर्ज़ है इस स्टेशन का नाम
कहने को तो पिंडरई
गांव में रेल के दो स्टेशन हैं, जिसमें पिंडरई और तुइयापानी की दूरी करीब
आधा किलोमीटर है. इतनी कम दूरी में रेलवे के दो स्टेशन पूरी दुनिया में
कहीं नहीं हैं इसलिये इस स्टेशन का नाम गिनीज बुक आफ वल्ड रिकार्ड में दर्ज
है. कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी होती
है मगर, इन ट्रेनों यात्री अपनी जान जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर
हैं. ट्रेन की छतों पर डिब्बों के बीच ज्वाइंट पर बैठकर यात्री गंतव्य पर
पहुंच रहे हैं. शायद ! प्रशासन को किसी हादसे का इंतजार है.
जैसे पार्क में चल रही हो ट्रेन
हाथ से इशारा करने पर
रुक जाने वालीं, छोटी पटरी छुक-छुक धीमी गति से चलने वालीं नैरोगेज ट्रेनें
किसी खिलौने से कम नहीं है. इस लाईन में रेंगने वाली ट्रेनों को मुसाफिर
हाथ देकर कहीं भी रोक लेता है. अंग्रेज़ों के ज़माने की इन नैरोगेज
ट्रेनों को देखने पर लगता है कि, शायद किसी पार्क में चलने वाली ट्रेनें
हों.
जनता को अच्छे दिनों का इंतज़ार
फिलहाल यहां के
यात्रियों को मोदी सरकार के इस अहम रेल मंत्रालय से अच्छे दिनों की उम्मीद
है. क्योंकि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा चुका यह
छोटी रेल लाईन का जंक्शन, अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. अंग्रेजी हुकूमत
के समय बनी इस ट्रेन को चलाने वाले ड्राईवर और सहायक रेल मंडल अधिकारी
मानव रहित रेलवे क्रासिंग में समय खराब होने की बात से इत्तेफाक रखते हैं
साथ ही ट्रेन में पोर्टर रखने की बात कह अपनी जवाबदारियों से पल्ला झाड
लेते हैं.
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