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भोपाल नवाबी तहजीब का शहर

कहावत है-ताल तो भोपाल ताल, बाकी सब तलैयां। भोपाल पहुंचने और दो बड़ी झीलों को देखने पर लगता है कि बात तो बिलकुल सही है। पूरा शहर दो मानवनिर्मित झीलों की बदौलत अपना अस्तित्व बनाए हुए है। ताल की कहानी बड़ी रोचक है। कहा जाता है कि राजा भोज एक बार सख्त बीमार पड़ गए। वैद्यों ने हाथ खड़े कर दिए तो एक ज्योतिषी ने कहा कि अगर राजा एक ऐसा ताल बनवाएं, जिसमें सात नदियों का पानी गिरता हो तो उनकी जान बच सकती है। राजा ने अपने मंत्रियों को ऐसी जगह ढूंढने का आदेश दिया और वह जगह वहीं मिली जहां अब भोपाल है। पर यहां कुल पांच नदियां थीं। थोड़ा और खोजने पर 15 मील दूर दो नदियां और मिलीं। उन्हें एक सुरंग के रास्ते यहां तक लाया गया और बांध बनाकर उनका पानी रोका जाने लगा। इधर ताल बनता गया उधर राजा की हालत सुधरती गई। फिर बनारस की सुबह और अवध की शाम के साथ-साथ मालवा की रात भी मशहूर हो गई।
मालवा
मालवा की रातें खास तौर से सुहानी होती हैं। इसके पानी के कारण सैकड़ों मील के इलाके में बंजर जमीन भी हरी-भरी होने लगी और उसने भोपाल सहित मालवा के मौसम को भी बदल दिया। कालांतर में यहां लोग बसने लगे। शुरू में यहां गोंड जनजाति का शासन था पर उनके नाम पर अब बस एक महल बचा है। आज का भोपाल नवाबों का भोपाल है और उसके इतिहास और वर्तमान दोनों पर ही नवाबी तहजीब का असर साफ दिखता है। औरंगजेब के अफगान गवर्नर दोस्त मोहम्मद ने भोपाल की स्थापना की थी। पर आज के शहर पर 1810 के बाद 100 साल से ज्यादा समय तक चले बेगमों के राज की छाप दिखाई देती है।
जिंदगी इतिहास में बेगमों ने ही शहर में मसजिदें, स्कूल, महल और हम्माम बनवाए। एक हम्माम तो आखिरी बेगम ने अपनी कनीज को सौंप दिया था और वह आज भी चलता है। अक्टूबर से मार्च के बीच चलने वाले इस हम्माम में अभी भी लकडि़यों में आग जलाकर गर्मी पैदा की जाती है और वही तेल इस्तेमाल किए जाते हैं जो आज से करीब 150 साल पहले किए जाते थे। हालांकि आज पांच सितारा होटलों की जकूजी और सौना के मुकाबले ये हम्माम काफी पुराना लगता है, पर इसकी खूबी ये है कि यहां नहाते वक्त आपको लगता है कि आप भी उन्हीं नवाबों के दौर में पहुंच गए हैं। कुल 80 रुपये में इतिहास के दौर में जीना बुरा सौदा नहीं लगता।
पुराना और नया भोपाल
भोपाल शहर को दो भागों में बांट सकते हैं। पुराना भोपाल और नया भोपाल। नया भोपाल तो आम मध्यवर्गीय शहर है जिसके बारे में इतना ही कह सकते हैं कि वह साफ-सुथरा है। असली शहर तो पुराना भोपाल ही है। यहां की सड़कों व गलियों में चलते हुए आपको नफीस उर्दू बोलते बूढ़े मिल जाएंगे।
उनमें से कई आज भी किस्सागोई के महारथी हैं। रेडियो, अखबार और टीवी आ जाने के बावजूद इन बड़े मियाओं का तर्ज-ए-बयां ही कुछ और है। ‘अरे खांव’ कह कर जैसे ही किस्सा सुनाते हैं तो हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाते हैं।इस शहर में एक और नवाबी विरासत है जो यहां के अलावा रामपुर और हैदराबाद में भी मिलती है। यह एक ऐसी गायन शैली है जो कव्वाली से मिलती-जुलती है। इसमें चार-चार लोगों की टीमें होती हैं, जो उसी समय गाने गढ़ती जाती हैं और  लाग-डांट इतनी बढ़ जाती है कि बात मार-पीट पर उतर आती है। इस विधा को बैतबाजी या चार बैत कहते हैं। इसका आयोजन प्राय: जाड़ों में होता है और मुकाबले रात भर चलते हैं।
अलसाई सी शाम भोपाल ऐसा शहर है, जहां पहुंचकर आपको लगता है कि महानगरों की अफरा-तफरी जैसे रुक गई है। शामें अलसाई सी दिखती हैं और लोगों में बाजार घूमने और यूं ही टहलने का शौक आज भी बरकरार है। यहां के लोगों को पुरानी खुली जीपों का बड़ा शौक है। पुराने मेकैनिकों या जीप मालिकों से ये लोग जीपें खरीदते हैं, उन्हें सजाते हैं और खुली जीप में शाम को भोपाल ताल के पास सड़क पर घूमने निकलते हैं। अगर आप कुछ नया देखना चाहते हैं तो श्यामला हिल्स पर बने भारत भवन में जा सकते हैं।  जनजातीय संस्कृति और नए साहित्य का यह गढ़ उन्हेंे बहुत रुचेगा, जिनकी रुचि ललित व लोक कलाओं में है।
कैसे पहुंचें
हवाई यात्रा: भोपाल का हवाई अड्डा पुराने शहर से 12 किमी दूर है। दिल्ली व मुंबई से यहां की नियमित उड़ानें हैं।
रेल यात्रा: दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से भोपाल के लिए सुबह शताब्दी व रात में हबीबगंज एक्सप्रेस ट्रेनें चलती हैं। साथ ही मुंबई या दक्षिण जाने वाली अधिकतर ट्रेनें भोपाल से गुजरती हैं।
सड़क यात्रा: जो पर्यटक सड़क के रास्ते यहां पहुंचना चाहते हैं, वे दिल्ली से आगरा, ग्वालियर व गुना होते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग सं. दो से भोपाल पहुंच सकते हैं। यात्रा दो दिन लंबी है और पहले दिन आपको ग्वालियर में ठहरना होगा।
कहां ठहरें
भोपाल में कई होटल हैं और यहां तीन पंचसितारा होटल है। एक होटल अशोक लेक व्यू, दूसरा जहांनुमा और तीसरा नूरूसबाह।  सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मयूर होटल बेरसिया रोड पर स्थित है। यह रेलवे स्टेशन से एक व हवाई अड्डे से नौ किमी दूर है। इसके अलावा हमीदिया रोड पर रैमसंस इंटरनेशनल होटल है। नए शहर के एमपी नगर में होटल रेजीडेंसी में भी ठहरा जा सकता है। गर्मी के दिनों में भोपाल में पर्यटक अपेक्षाकृत कम आते हैं। इसलिए सीमित बजट में यात्रा करने वालों के लिए यह अच्छा मौसम होता है। इस समय कम पैसे में ठहरने के लिए अच्छे होटल मिल सकते हैं और स्थानीय भ्रमण के लिए टैक्सियों आदि का भाड़ा भी कम ही देना पड़ेगा।
अगर ईट पत्थर से जुड़े इतिहास में आपकी रुचि ज्यादा नहीं है और आप लोगों व उनके बीच जीवित परंपराओं की ही खोज में रुचि लेते हैं तो उनमें सबसे महत्वपूर्ण होता है भोजन। कहते हैं किसी भी संस्कृति का परिष्कार उसके भोजन में दिखता है। जिन्हें मांसाहार का शौक है, भोपाल उनके लिए स्वर्ग है। यहां खाने की शुरूआत पीने से होती है। तांबे के बर्तन में बनी खास सुलेमानी चाय न सिर्फ आपको तरोताजा करती है, बल्कि जबर्दस्त भूख भी जगाती है।
पुराने शहर में या नए शहर के पांच सितारा होटलों में आप खास नवाबी व्यंजनों का आनंद ले सकते हैं। इसमें हलीम, बिरयानी, कोरमा, सालन, कीमा और कबाब शामिल हैं। इनके अलावा एक पसंदा नाम का व्यंजन होता है, जिसमें बहुत मुलायम मांस के टुकड़े ग्रेवी में डाले जाते हैं और इसे अकसर चावल के साथ खाया जाता है। शाकाहारियों को अगर ऐसा लग रहा हो कि वे भूखे रह जाएंगे तो ऐसी बात नहीं है। उनके लिए भी खाने की पर्याप्त चीजें मौजूद हैं। नवाबों के खानसामाओं ने उन्हें शानदार मीठे की भी आदत डलवा दी थी। आज भी वे मिठाइयां आप चख सकते हैं और उनका मजा ले सकते हैं। इनमें खुशबूदार मीठा चावल, जर्दा, मुज्जफिर और शाही टुकड़ा शामिल है।
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