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यहां कैरी और पान का प्रसाद खाने पर प्रेग्नेंट हो जाती हैं महिलाएं

मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के नागझिरी गांव में लगने वाले इस अनूठे मेले में हर व्‍यक्ति की मन्‍नत नहीं बल्कि नि:संतान दंपतियों की मन्‍नत पूरी होती है. जी हां  निमाड के संत बोंदरू बाबा की समाधि पर भादौ पक्ष की नवमी पर लगता है आस्था का एक अनूठा मेला.
इस मेले की धार्मिक मान्यता है कि यहां आकर कैरी और पान का प्रसाद खाने से नि:संतान दंपतियों को संतान का सुख प्राप्‍त हो जाता है.इस मेले के दौरान खास बात यह है कि पूरे देश से श्रद्धालु यहां आते हैं.  यहां से संतान प्राप्ति की मन्नत पूरी होने पर बच्चों के तुलादान करने वालों की भी भीड़ रहती है. वहीं, संतान की इच्छा रखने वाली महिलाओं का भी सैलाब उमड़ता है.
संत बोंदरू बाबा ने 1790 में जीवित समाधि ली थी, तब से आज 225 वर्षों से मेला यहां लग रहा है. आस्था और श्रद्धा के चलते यहां जनसैलाब उमड़ता है. संतान प्राप्ति के अनूठे एक दिवसीय मेले को लोग बाबा का चमत्कार मानते हैं. विज्ञान और मेडिकल साईंस दोनों जहां फेल होते है, वहां बाबा के आर्शीवाद से वर्षों से सूनी गोद भी भर जाती है.इस मेले में शामिल होने वाली शिवना गांव की सुनीता महेश्वरी ने बताया कि वह पिछले वर्ष बाबा के पास मन्नत मांगने आई थी. अब 20 साल बाद बौंदरू बाबा की कृपा से उसकी गोदी भर गई. अब सुनीता अपने बच्चे का फलों से तुलादान करने पहुंची हैं.
सुनीता की तरह ही बालाघाट से आईं पूजा पाराशर यहां लगने वाले आस्था के मेले में बाबा से बच्चे की मन्नत मांगने पहुंची हैं. पूजा की गोद करीब 5 साल से सूनी है. उनकी तरह ही करीब 500 से अधिक महिलाएं बाबा के दरबार में गोद भरने की आस लेकर पहुंची हैं.
बेमौसम कैरी मिलना चमत्कार
स्थानीय लोग बताते हैं कि बाबा के वैसे तो कई चमत्कार हैं, लेकिन संतान प्राप्ति की महिमा ने बौंदरू बाबा की महिमा पूरे देश में फैला दी है. बेमौसम कैरी का मिलना और केरी-पान के साथ जलते हुए कपूर का प्रसाद से लोगों की संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होना भी चमत्कार है. लोगों के मुताबिक, विज्ञान की दृष्टि में भले ही अंधकार हो, लेकिन यहां जनसैलाब विज्ञान पर भारी नजर आता है.
स्थानीय नागरिक लखन चौधरी ने बताया कि, यहां बाबा का चमत्कार 225 वर्षों से चला आ रहा है. हर साल यहां संतान प्राप्ति के लिए और तुलादान करने के लिए भीड़ उमड़ती है. उनका कहना है कि विज्ञान की सीमा जहां समाप्त होती है, वहां श्रद्धा का आलौगिक संसार शुरू होता है.
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