इंदौर: सेना
के करीब 100 कर्मियों ने तड़के विजय नगर पुलिस थाने में कथित तौर पर
तोड़-फोड़ की और मारपीट करते हुए करीब पांच पुलिस कर्मियों को घायल कर
दिया।
पुलिस अधीक्षक (पूर्वी क्षेत्र) ओपी त्रिपाठी ने बताया कि नजदीकी सैन्य क्षेत्र महू से मोटरसाइकिलों और चारपहिया वाहनों पर सवार होकर आए ये फौजी विजय नगर थाने में तड़के पांच बजे के आसपास धड़धड़ाते हुए घुसे। इन्होंने थाने के अलग-अलग कमरों में घुसकर खिड़की के शीशों, कम्प्यूटरों और अन्य सामान को तहस-नहस कर डाला।
सूत्रों ने बताया कि विजय नगर इलाके में देर रात गश्त कर रहे पुलिसकर्मियों का एक बार के पास कुछ फौजियों से तीखा विवाद हुआ था। विजय नगर पुलिस थाने में आज तड़के फौजियों की कथित तोड़-फोड़ और मारपीट को रात हुए विवाद की प्रतिक्रिया माना जा रहा है।
पुलिस अधीक्षक (पूर्वी क्षेत्र) ओपी त्रिपाठी ने बताया कि नजदीकी सैन्य क्षेत्र महू से मोटरसाइकिलों और चारपहिया वाहनों पर सवार होकर आए ये फौजी विजय नगर थाने में तड़के पांच बजे के आसपास धड़धड़ाते हुए घुसे। इन्होंने थाने के अलग-अलग कमरों में घुसकर खिड़की के शीशों, कम्प्यूटरों और अन्य सामान को तहस-नहस कर डाला।
सूत्रों ने बताया कि विजय नगर इलाके में देर रात गश्त कर रहे पुलिसकर्मियों का एक बार के पास कुछ फौजियों से तीखा विवाद हुआ था। विजय नगर पुलिस थाने में आज तड़के फौजियों की कथित तोड़-फोड़ और मारपीट को रात हुए विवाद की प्रतिक्रिया माना जा रहा है।
भोपाल| मध्य प्रदेश की
राजधानी भोपाल में शुरू हुए तीन दिवसीय 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में
हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
400 साल पुरानी है।
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भोपाल| मध्य प्रदेश की
राजधानी भोपाल में शुरू हुए तीन दिवसीय 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में
हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
400 साल पुरानी है।
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भोपाल| मध्य प्रदेश की
राजधानी भोपाल में शुरू हुए तीन दिवसीय 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में
हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
400 साल पुरानी है।
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हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
400 साल पुरानी है।
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हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
400 साल पुरानी है।
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हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
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पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
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स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
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हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
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दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
400 साल पुरानी है।
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हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
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हिंदी के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां श्रीमद्भगवद गीता की एक ऐसी
पांडुलिपि का प्रदर्शन किया गया है, जिसे सोने की स्याही से लिखा गया है।
आयोजन स्थल पर लगी ‘कल, आज और कल’ प्रदर्शनी हिंदी के बढ़ते प्रभाव को
दर्शाती है। इसमें एक तरफ तकनीक में हिंदी की बढ़ती पैठ दिखाई गई है तो एक
स्टॉल ऐसा भी है, जो हमारी संस्कृति और भाषा की समृद्धि को प्रदर्शित कर
रहा है। यहां साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी उपलब्ध है।
यहां प्रदर्शित पांडुलिपियां किसी संस्था या संगठन ने नहीं, बल्कि डा.
शशितांशु त्रिपाठी के परिवार की धरोहर है। वह बताते हैं कि उनके परिवार में
इन पांडुलिपियों को पीढ़ियों से सहेज कर रखा गया है।
शशितांशु ने आईएएनएस को बताया कि उनके पास सबसे पुरानी पांडुलिपि महाकवि
कालीदास की रघुवंशम् महाकाव्य की है। यह पांडुलिपि संवत 1552 (ईसवी 1498)
की है। इसके अलावा भी यहां विभिन्न गं्रथों की पांडुलिपियां प्रदर्शित की
गई हैं।
यहां सबसे बड़ा आकर्षण सोने की स्याही से लिखी गई श्रीमद्भगवद गीता है।
इसमें रंगों का अद्भुत समावेश है। सोने की स्याही के साथ अन्य रंगों से
जहां श्लोक लिखे गए हैं, वहीं विविध नायकों की तस्वीरें भी बनाई गई हैं।
शशितांशु ने बताया कि इस श्रीमद्भगवद गीता में सोने की स्याही के साथ ही
प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इसके चित्रों में मुगल एवं
राजस्थान की कला के मिश्रण का समावेश नजर आता है। यह पांडुलिपि लगभग 350 से
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