तीन दशक बाद फिर लौटा साल बोरर,पूर्वी मप्र के जंगलों में बड़ा खतरा
भोपाल। छत्तीसगढ़ से लगे पूर्वी मध्य प्रदेश के जंगलों में एक बार फिर साल बोरर सिर उठा रहा है। यह स्थिति लगभग तीन दशक बाद बनी है। पिछली बार जब यह प्रकोप सामने आया था तब लाखों पेड़ों की कटाई हुई थी और मामला सियासी बवंडर बन गया था।
बोरर कीट ने बढ़ाई वन विभाग की चिंता
साल वृक्षों पर बोरर कीट के प्रकोप ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है। अब तक डिंडौरी और अनूपपुर वन वृत के अमरकंटक क्षेत्र के सैकड़ों हेक्टेयर इलाके में इस कीट की उपस्थिति मिली है। कीट फिलहाल लार्वा अवस्था में है। जानकारों के अनुसार ग्रीष्मकाल में तापमान बढ़ने तक यह तितली का रूप लेकर लाखों पेड़ों में ‘पोल’ बनाकर उन्हें सुखा सकता है।
डिंडौरी में 30 फीसदी तक फैला प्रकोप
सूत्रों के मुताबिक साल बोरर का सबसे बड़ा असर डिंडौरी में सामने आया है। छत्तीसगढ़ से लगे ईस्ट करांजिया क्षेत्र की 8 से 10 बीटों में इसकी मौजूदगी पाई गई है। क्षेत्रफल के अनुसार फिलहाल प्रभावित इलाका 10 हजार हेक्टेयर से अधिक है। यहां साल के लगभग 30 से 35 हजार वृक्ष कीट प्रकोप के कारण सूखते जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ से कीट आने की आशंका
साल वृक्षों पर बोरर का हमला सामान्य घटना है, लेकिन इस वर्ष कई क्षेत्रों में अतिवृष्टि हुई, जिससे जंगलों में नमी बढ़ी और कीट तेजी से पनपा। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे जंगलों में इसकी मौजूदगी मिलने पर यह आशंका जताई जा रही है कि संभवत: इसकी आवक पड़ोसी राज्य से हुई हो, जहां साल वृक्षों की संख्या मप्र की तुलना में ज्यादा है। डिंडौरी के अलावा अनूपपुर के अमरकंटक और शहडोल जिले के कुछ जंगलों में भी इसका असर देखा जा रहा है।
कीट प्रभावित पेड़ों की मार्किंग शुरू
प्रकोप को देखते हुए वन विभाग ने प्रभावित वन मंडलों में पेड़ों की मार्किंग का काम शुरू कर दिया है। डिंडौरी फॉरेस्ट सर्किल में बड़ी संख्या में आदिवासी श्रमिक लगाए गए हैं, जो प्रभावित पेड़ों की पहचान कर उन पर लाल रंग से पुताई कर रहे हैं। यही काम अनूपपुर के अमरकंटक और शहडोल के जंगलों में भी जारी है।
पूर्वी मध्य प्रदेश में साल के सर्वाधिक वृक्ष
देश में सर्वाधिक साल वृक्ष झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वी मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं, जो देश के कुल साल वनों का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा हैं। साल की लकड़ी मजबूत होती है और इसका उपयोग रेल स्लीपर से लेकर फर्नीचर तक में किया जाता है। साल का धार्मिक महत्व भी है—कहा जाता है कि भगवान बुद्ध का जन्म साल वृक्ष के नीचे हुआ था और महावीर स्वामी ने इसी वृक्ष के नीचे ध्यान किया था। मध्य प्रदेश के लगभग 70 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र में साल पाया जाता है और इनकी संख्या लाखों में है।
वैज्ञानिकों ने किया प्रभावित क्षेत्र का निरीक्षण
सूत्रों के अनुसार प्रकोप सामने आने के बाद वन विभाग के निर्देश पर वन अनुसंधान केंद्र, जबलपुर की वैज्ञानिक टीम ने डिंडौरी और अमरकंटक का दौरा किया है। टीम ने दोनों क्षेत्रों में कीट की उपस्थिति सामान्य से अधिक पाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
प्रभावित पेड़ों की कटाई ही एकमात्र प्रभावी उपाय
विशेषज्ञ बताते हैं कि बोरर प्रकोप को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका प्रभावित पेड़ों की कटाई है, ताकि यह अन्य स्वस्थ वृक्षों तक न फैले। क्लोरोफायरफॉस कीटनाशक से इसे नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन बड़े वन क्षेत्र में इसका छिड़काव अव्यावहारिक है और इससे वन्य प्राणियों को नुकसान की आशंका भी रहती है। इसलिए विभाग इसका उपयोग करने से बचता रहा है।
मुंडमाला योजना कागजों तक सिमटी
वन अनुसंधान केंद्र ने बोरर नियंत्रण के लिए ‘मुंडमाला योजना’ की भी सिफारिश की थी। इसमें वनवासी आदिवासियों को आर्थिक सहायता देकर लार्वा का सिर काटकर नष्ट करने के लिए प्रेरित किया जाता है। साल वृक्ष से निकलने वाला अम्लीय द्रव बोरर को आकर्षित करता है और यही उसकी मृत्यु का कारण भी बनता है। प्रशिक्षित आदिवासी इस द्रव को जमा कर कीटों को आकर्षित करते हैं और उनका सिर काटकर विभाग को सौंपते हैं। पहले यह योजना कुछ बीटों में चली, लेकिन बड़े क्षेत्र में लागू करना लगभग असंभव होने के कारण इसे बंद कर दिया गया।
विभाग सतर्क, रिपोर्ट का इंतजार
डिंडौरी वन मंडलाधिकारी पुनीत सोनकर ने ईस्ट करांजिया क्षेत्र में बोरर प्रकोप की पुष्टि की है। उनके अनुसार प्रभावित पेड़ों की मार्किंग बड़े पैमाने पर जारी है और इसमें लगभग एक माह लग सकता है। इसके बाद ही प्रभावित पेड़ों की सटीक संख्या सामने आएगी। वहीं, वन अनुसंधान केंद्र की वरिष्ठ वैज्ञानिक नीलू सिंह के अनुसार 5 से 10 प्रतिशत वृक्ष विभिन्न ग्रेड में फिलहाल प्रभावित हैं।
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