....

माओवाद की जमीन पर खिलेगा ''शिक्षा का फूल"

 माओवाद की जमीन पर खिलेगा ''शिक्षा का फूल"

छत्तीसगढ़ में 16 जून से जब स्कूलों की घंटी बजेगी, तब बस्तर के घने जंगलों में कुछ खास बदलाव की गूंज भी सुनाई देगी। जहां एक वक्त बंदूक की धमक थी, वहां अब बच्चों की खिलखिलाहट और बस्ते की सरसराहट सुनाई देगी। माओवादी हिंसा से धीरे-धीरे आजाद हो रहे इस क्षेत्र में इस बार का प्रवेश उत्सव खास होगा, क्योंकि अब झोपड़ी वाले स्कूल पक्के भवनों में बदल रहे हैं और बंद स्कूलों के दरवाज़े फिर से खुलने को तैयार हैं।



राज्य सरकार ने नियद नेल्ला नार योजना के तहत बस्तर के लगभग ढाई सौ झोपड़ीनुमा स्कूलों को स्थायी भवन देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। कई स्कूलों का कायाकल्प हो चुका है और अब प्रवेशोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। वहीं वर्षों से बंद पड़े 13 स्कूलों को फिर से चालू किया जा रहा है, साथ ही सात नए स्कूल भी खुलेंगे।


नारायणपुर: गांवों में लौटी शिक्षा की रौनक

नारायणपुर जिले के ओरछा विकासखंड में मुरुमवाड़ा, घमंडी और वाड़ापेंदा जैसे गांवों के स्कूल वर्षों से वीरान पड़े थे। माओवादियों ने कभी इन भवनों को उड़ा दिया था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। विकासखंड शिक्षा अधिकारी दीनबंधु रावटे के अनुसार, ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह है। फिलहाल गोटुल जैसे सामुदायिक भवनों में अस्थायी कक्षाएं लगाई जाएंगी।


बीजापुर में 11 बंद स्कूल होंगे चालू

बीजापुर डीईओ लखनलाल धनेलिया ने बताया कि नियद नेल्ला नार योजना के तहत 111 स्कूल भवन निर्माणाधीन हैं। इनमें से 41 पहले से बने थे और 68 नए स्वीकृत हुए हैं। इस योजना के तहत उसूर विकासखंड के रेगड़गट्टा, अन्नावरम, करका, सावनार, एडसमेट्टा जैसे माओवादी हिंसा से प्रभावित गांवों के 11 स्कूलों में फिर से शिक्षा की लौ जल उठेगी।


बच्चों को अब नहीं जाना होगा दूर

बस्तर के बीजापुर, नारायणपुर, सुकमा जैसे जिलों में पहले जहां बच्चों को पोर्टाकेबिन और आवासीय आश्रमों में घर से दूर पढ़ना पड़ता था, अब वहीं गांव में ही स्कूल खुलने से पढ़ाई आसान हो जाएगी। ग्रामीण भी अपने बच्चों को घर के पास स्कूल जाते देखने को उत्साहित हैं।

Share on Google Plus

click XYZ

    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment