....

भारत की सभ्यता, दिव्यता, उत्कृष्टता और आध्यात्मिकता दिव्यांगजनों में दिखती है : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़


 उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कल कि "हमारी सभ्यता विश्व में अद्वितीय है, यह सभ्यता एवं संस्कृति 5000 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। यह प्रतिबिंबित करता है कि हम दिव्यांगजनों में दिव्यता देखते हैं, आध्यात्मिकता देखते हैं।"


कल नई दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में आयोजित स्पेशल ओलंपिक एशिया पैसिफिक बोक्से और बॉलिंग प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए, जगदीप धनखड़ ने कहा कि, “इन खेलों के माध्यम से, हम बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। इसका उत्सव मनाते हुए, पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में दिव्यांगजनों के लिए समावेशन और सम्मान विशेष ओलंपिक वैश्विक समावेशन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है और प्रतिबिंबित करता है।"


देश के युवाओं के डिजिटल जुनून पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, जगदीप धनखड़ ने कहा, “मैं इस अवसर पर पूरे समाज के लिए एक गंभीर चिंता व्यक्त करना चाहूंगा और यह बहुत गंभीर है। यह बेहद चिंताजनक होता जा रहा है। आज की तेज़-तर्रार डिजिटल दुनिया में, हमारे युवा और बच्चे बड़ी तेजी से छोटी प्लास्टिक स्क्रीन - मोबाइल का उपभोग कर रहे हैं! उन्हें वास्तविक खेल के मैदानों से दूर डिजिटल खेल के मैदानों में धकेल दिया गया है। मैं प्रत्येक माता-पिता से विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कहूंगा कि इस छोटी प्लास्टिक स्क्रीन के कारण बच्चे वास्तविक खेल के मैदानों से वंचित न रहें। आइए सुनिश्चित करें कि यह डिजिटल जुनून बच्चों, इस पीढ़ी से असली खेल के मैदान का रोमांच, भावना और ज्ञान न छीन ले।"


विशेष रूप से सक्षम और प्रतिभाशाली एथलीटों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “आप न केवल मैदान पर बल्कि जीवन के खेल में भी एक चैंपियन हैं जहां आप उन चुनौतियों के खिलाफ जीत हासिल करते हैं जिनकी हममें से कई लोग केवल कल्पना ही कर सकते हैं। उनके प्रदर्शन को देखना बहुत आसान है, उस पर विचार करें और गहराई से नजर डालें। वे 24x7 इन चुनौतियों का सामना करते हैं और फिर भी उनकी ऊर्जा, जोश और उत्साह को देखें।


अदम्य मानवीय भावना पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, "इतिहास गवाह है कि दिव्यांगता ने मानवीय भावना को वश में नहीं किया है। मानवीय भावना विजय से परे है और इसको वश में नहीं किया जा सकता। चुनौतियों की विशालता के बावजूद मानवीय भावना स्वयं सामने आती है। यह भावना अदम्य है।"


जीवन में खेल के महत्व पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, "खेल बोली से परे एक भाषा है। खेल शब्दावली से परे एक भाषा है। खेल एक सार्वभौमिक भाषा है। खेल सभी बाधाओं को तोड़ता है। मानवता की अभिव्यक्ति है। खेल से सभी सीमाएं दूर हो जाती हैं। खेल मानव मस्तिष्क को अद्वितीय रूप से शक्ति प्रदान करते हैं और जब यह विशेष रूप से सक्षम बच्चों, लड़कों और लड़कियों और बुजुर्गों से संबंधित खेल होते हैं, तो यह आशा की नई रोशनी पैदा करते हैं।"


देश में खेलों के प्रति बदलती धारणा पर विचार करते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा - “हम सभी भारत में खेलों के प्रति दृष्टिकोण में बड़े बदलाव महसूस कर सकते हैं, जब मैं बच्चा था, तो हम अक्सर सुनते थे:


"पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब


खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब"


यह विचार खेल समर्थक नहीं था। खेल पीछे छूटते गए। अब समय बदल गया है। नया मंत्र है:


"किताब भी जरूरी खेल भी जरूरी, दोनों के बिना ज़िंदगी अधूरी"


उन्होंने कहा- "खेल को अब पाठ्येतर गतिविधि के रूप में नहीं देखा जाता है। यह शिक्षा और जीवन का एक अभिन्न अंग है, चरित्र निर्माण का माध्यम है, एकता को बढ़ावा देता है और हमें राष्ट्रीय गौरव से भर देता है।"


राष्ट्र निर्माण में दिव्यांगजनों की भूमिका और एक व्यवहार्य इकोसिस्टम के उद्भव पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा - "राष्ट्र निर्माण में विशेष रूप से सक्षम लोगों की विशेष भूमिका है। भारत सबसे बड़ा जीवंत लोकतंत्र है, जिसमें मानवता का छठा हिस्सा निवास करता है। चुनाव आयोग ने सभी कदम उठाए हैं, हर कदम उठाया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मौलिक अधिकार, ग्रह पर किसी भी व्यक्ति का मूल अधिकार, चुनावी मतपत्र और वोट द्वारा अपने भाग्य का फैसला करने में भागीदार होने का अधिकार, उन्हें उपलब्ध कराया गया है।”


उन्होंने कहा, "भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो आशा जगाने के लिए हाथ बढ़ाता है ताकि हर किसी को एक सार्थक जीवन मिल सके।"


उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में विभिन्न सकारात्मक कदम उठाए गए हैं, ताकि दिव्यांगजन अपनी ऊर्जा और क्षमता का उपयोग कर सकें, अपनी आकांक्षाओं और सपनों को पूरा कर सकें। उन्होंने कहा, "2016 में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम पारित किया गया। विशेष कतारें, घर से मतदान, ईवीएम पर ब्रेल लिपि की सुविधाएँ और कई अन्य उपाय हमारी चुनाव प्रक्रिया में शामिल हैं। इस वर्ग के लिए शिक्षा में आरक्षण अब 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। 2015 में स्थापित भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (आईएसएलआरटीसी) और 2019 में स्थापित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान (एनआईएमएचआर) सकारात्मक पहल हैं। सभी प्रकार के दिव्यांग नागरिकों के लिए ग्वालियर में दिव्यांग खेल केंद्र स्थापित किया जा रहा है।"


Share on Google Plus

click newsroom

    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment