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ओंकारेश्वर में एकात्मता मूर्ति की स्थापना का पहला वर्षगांठ उत्सव


 संपूर्ण भारत को सांस्कृतिक रूप से एकात्मता की डोर में बांधते हुए वेदों के अद्वैत सिद्धांत को प्रकाशित करने वाले जगद्गुरू आद्य शंकराचार्य की वेदांतिक शिक्षाओं और सनातन के लिए उनके योगदान को जनव्यापी बनाने के लिए मध्यप्रदेश के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा ओंकारेश्वर में एकात्म धाम का निर्माण कराया जा रहा है। यह एकात्म धाम ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के किनारे स्थित मांधाता पर्वत पर विकसित किया जा रहा है। इसमें आचार्य शंकर की 108 फीट ऊंची प्रतिमा की स्थापना 'एकात्मता की मूर्ति' के रूप में की गई है। शनिवार को एकात्मता मूर्ति की स्थापना 'शंकरावतरण' की पहली वर्षगांठ को आचार्य शंकर न्यास द्वारा ओंकारेश्वर में वैदिक यज्ञ-अनुष्ठान के साथ मनाया गया। वर्षगांठ के अवसर पर सर्वप्रथम ओंकारेश्वर मंदिर के प्रमुख पुरोहित पंडित डंकेश्वर महाराज द्वारा आद्य शंकराचार्य की प्रतिमा के समक्ष पूजन, रूद्राभिषेक व हवन कराया गया। इसके बाद आर्ट ऑफ लिविंग के बटुकों द्वारा गुरुपूजन, वेदपाठ, आचार्य शंकर विरचित स्तोत्रों का गायन कराया गया। जिसके उपरांत उपस्थित संत-महंतों द्वारा भाष्यकार भगवन आद्य शंकराचार्य की आरती की गई। इस उपलक्ष्य में ओंकारेश्वर के स्वामी नर्मदानंद जी, उत्तरकाशी के स्वामी हरिबृह्मेन्दरानंद तीर्थ जी, स्वामी प्रणवानंद सरस्वती सहित आर्ट ऑफ लिविंग के बटुक व शंकर प्रेमीजन उपस्थित रहे।


उल्लेखनीय है कि आद्य शंकराचार्य जब केरल से देश भ्रमण पर निकले तब वह 8 वर्ष की आयु में मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर आए थे। जहां उनका मिलन अपने गुरु गोविंदपाद के साथ हुआ था। आचार्य की गुरुभूमि की इन्हीं स्मृतियों को अविस्मरणीय बनाने के साथ ही शंकर विचार के लोकव्यापीकरण के लिए ओंकारेश्वर में बन रहे एकात्म धाम में आद्य शंकराचार्य जी की 108 फीट की 'एकात्मता की मूर्ति' की स्थापना की गई है।


एकात्म धाम में शंकरावतरण की वर्षगांठ पर हुए वेदपाठ के आध्यात्मिक स्वरों से ओंकारेश्वर का गगनमंडल अलौकिक ऊर्जा से सराबोर हो गया। आयोजन में आचार्य शंकर प्रणीत भाष्य ग्रंथों का अखंड पारायण - ब्रह्मसूत्र, एकादश उपनिषद, एवं श्रीमद्भागवत गीता का पाठ किया गया। आर्ट ऑफ लिविंग के बटुकों द्वारा सामवेद की कौथमी शाखा व यजुर्वेद की मध्यान्दिनी शाखा का पाठ किया गया। साथ ही बटुकों द्वारा शंकर विरचित - गणेश पंचरत्नम, नर्मदाष्टकम, लिंगाष्टकम, तोटकाष्टकम, गुरु अष्टकम आदि स्तोत्रों का पाठ भी किया गया। बटुकों के स्वर से प्रणीत शंकर स्तोत्रों की रसधार में एकात्म धाम में उपस्थित हर अद्वैत प्रेमी मंत्रमुग्ध हो गया।



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