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चार बार के विधायक रहे रसाल सिंह ने भाजपा से दिया इस्तीफा, टिकट कटने से थे नाराज

 

 मप्र विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी होते ही बीजेपी से इस्तीफों का दौर भी शुरू हो गया। रविवार को भी भाजपा को चंबल में एक बड़ा झटका लगा है और टिकट न मिलने से नाराज चल रहे चार बार के विधायक ने बीजेपी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। वे सोमवार को लहार में आयोजित होने वाले बहुजन समाज पार्टी के सदस्य ग्रहण समारोह में पूर्व विधायक बसपा का दामन थाम सकते हैं।



रविवार को पूर्व विधायक रसाल सिंह ने भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। रसाल सिंह टिकट न मिलने से नाराज चल रहे थे और रविवार को उन्होंने अपना इस्तीफा लिख दिया। अपने इस्तीफे में रसाल सिंह ने लिखा है "मैंने भाजपा संगठन के एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। सदैव संगठन के हित में कार्य किया लेकिन चूंकि संगठन ने पार्टी के साथ गद्दारी करने वाले नेता को बढ़ावा देकर बिना किसी को सुने चुनावी रण में उतारकर पार्टी के लोकतंत्र की हत्या की है। ऐसे में मेरा उनके लिए प्रचार करना मेरे स्वाभिमान के साथ न्याय नहीं होगा। इसलिए मैं तत्काल प्रभाव से भाजपा संगठन की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं।''


सीएम के दौरे से पहले इस्तीफा

रसाल सिंह भिंड की लहार विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने यहां अंबरीष शर्मा गुड्डू को प्रत्याशी घोषित किया है। अंबरीष शर्मा की टिकट घोषित होने के बाद से ही रसाल सिंह नाराज चल रहे थे। बता दें कि सीएम शिवराज सिंह चौहान रविवार को भाजपा कार्यालय का उद्घाटन करने लहार पहुंचे थे। सीएम के दौरे से ठीक पहले पूर्व विधायक रसाल सिंह का इस्तीफा दिया जाना चंबल में भाजपा पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

चार बार के विधायक हैं रसाल सिंह

रसाल सिंह उमा भारती के समर्थक बताए जाते हैं। वर्ष 1972 में रसाल सिंह को पहली बार जनसंघ की तरफ से चुनाव लड़ते हुए भिंड जिले की रौन विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे, इसके बाद साल 1977 में भी जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने।


वर्ष 1998 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर रौन विधानसभा सीट से जीत दर्ज कराई और फिर जीत का यह सिलसिला बीजेपी के टिकट पर ही साल 2003 में भी बरकरार रहा। चार बार रौन विधानसभा सीट से विधायक रह चुके रसाल सिंह भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष भी रहे हैं, इसके अलावा वे नगर पालिका भिंड के भी अध्यक्ष रह चुके हैं। साल 2008 में परिसीमन के बाद रौन विधानसभा को खत्म कर दिया गया और रौन विधानसभा के क्षेत्र को लहार और मेहगांव विधानसभा सीट में मिला दिया गया।

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