Ganpati 2023: हर साल हिंदू माह भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। इस साल गणेश चतुर्थी 19 सितंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। दस दिनों तक चलने वाले इस त्योहार का समापन 28 सितंबर होगा।
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा फूलों के बिना अधूरी है। फूलों की सुगंध से जहां वातावरण सुशोभित होता है। वहीं, भगवान भी प्रसन्न होते हैं। वैसे हर देवी-देवता का एक पसंदीदा फूल होता है। अगर उस पुष्प से उनकी पूजा की जाए तो भगवान अधिक प्रसन्न होते हैं। देशभर में 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। गणेश पूजा fसे पहले जानिए आप किन फूलों से विघ्नहर्ता की पूजा कर कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार गणेश बुद्धि और सिद्धि के देवता है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि वह किन फूलों से खुश होंगे। तो पूजा से पहले जान लें कि भगवान गणपति के पसंदीदा पुष्प कौन-से हैं।
गुड़हल का फूल भगवान गणेश को बहुत प्रिय है। अगर उनकी पूजा में यह पुष्प चढ़ाया जाए तो वह समृद्धि प्रदान करते हैं और दुश्मनों का नाश करते हैं।
अपराजिता का फूल शनि को बहुत प्रिय है। यह पुष्प गणेश जी को भी अत्यंत प्रिय है। इस फूल से लंबोदर की पूजा करने से विवाद में आ रही बाधा दूर हो जाती है।
सभी पूजा में पीले गेंदे का उपयोग किया जाता है। भगवान गणेश को यह फूल प्रिय है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए गेंदे के फूल की माला सिद्धिदाता को अर्पित करें।
पारिजात का फूल यह फूल रात में खिलता है। यह कोमल और सुंगधित पुष्प प्रिय है। पारिजात के पुष्पों से सिद्धिदाता की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्म में गणपति की पूजा के साथ ही उनके उचित विसर्जन भी बड़ा महत्व है। इस अनुष्ठान में भगवान गणपति की मिट्टी की मूर्तियों को जल निकायों में विसर्जित किया जाता है, जो देवता की अपने घर वापसी यानी कैलाश पर्वत पर प्रस्थान करने का प्रतीक है। '
हिन्दू परिवारों में गणपति बप्पा सिर्फ आने वाले भगवान नहीं हैं, बल्कि परिवार के एक सदस्य होते हैं, जो हर साल अपने भक्तों के घरों में कुछ दिनों के रहते हैं और फिर वापस अपने निवास के लिए प्रस्थान करते हैं।
जब हम अपने घरों में लाते हैं और प्राण प्रतिष्ठा करते हैं, तो मंत्रों के माध्यम से गणपति का आह्वान किया जाता है।लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जो भी पृथ्वी पर आया है या इस ग्रह पर पैदा हुआ है, उसका जाना भी जरुरी है।
गणपति विसर्जन जन्म और मृत्यु के इसी चक्र का प्रतीक है। अनुष्ठान और परंपराओं के आधार पर विसर्जन 3, 5, 7 और 11वें दिन किया जा सकता है। गणपति विसर्जन में भगवान गणेश की मूर्ति की विदाई दी जाती है और उसे जल में विसर्जित किया जाता है।.
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