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कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से दो सप्ताह में मांगा जवाब




दिल्ली, 08 मई उच्चतम न्यायालय ने 1994 में बिहार के गोपालगंज के तत्कालीन जिला अधिकारी तेलंगाना के निवासी कृष्णैया की मुजफ्फरपुर में पीट-पीटकर हत्या करने वाली उत्तेजित भीड़ का नेतृत्व करने दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को उम्र कैद की पूर्व निर्धारित सजा पूरी होने से पहले रिहा करने के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर सोमवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने कृष्णैया की विधवा तेलुगू उमादेवी कृष्णैया की रिट याचिका पर बिहार सरकार एवं अन्य को दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का आदेश जारी किया। शीर्ष अदालत इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद करेगी। बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को 10 दिसंबर 2002 के बिहार जेल नियमावली में संशोधन किया था। इस बदलाव के बाद राज्य सरकार ने बाहुबली नेता आनंद मोहन को 24 अप्रैल 2023 को जेल से रिहा करने का आदेश सहरसा जिला प्रशासन को दिया गया था। सरकार के आदेश के बाद जेल प्रशासन ने 27 अप्रैल को आनंद मोहन को रिहा किया था। मृतक की विधवा उमादेवी ने हत्या के दोषी आनंद मोहन की रिहाई करने के फैसले और जेल नियमावली संशोधन के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ता उमादेवी ने अपनी रिट याचिका में दलील दी देते हुए कहा है कि शीर्ष अदालत ने लगातार यह माना है कि समय से पहले रिहाई के आवेदन पर निर्णय लेने के लिए दोषसिद्धि के समय लागू छूट के नियमों पर विचार किया जाना चाहिए। इस प्रकार 2007 में याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि के समय लागू नियम उसके छूट के आवेदन पर विचार करने के लिए लागू होंगे। यानी मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने के बाद 20 साल से पहले रिहाई नहीं हो सकती। याचिका में बिहार जेल नियमावली- 2012 के नियम 481(1)(सी) का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि जिन दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है, वे सजा के 20 साल पूरे होने के बाद ही छूट के पात्र होंगे। याचिका में यह भी कहा, “वर्तमान मामले में आनंद मोहन केवल 14 साल की कैद में रहे हैं। इसलिए वह नियम के अनुसार छूट के लिए योग्य नहीं है।” भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1985 कैडर के 37 वर्षीय अधिकारी कृष्णैया की हत्या 1994 में मुजफ्फरपुर जिले में उस भीड़ ने की थी, जो स्थानीय गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम की अंतिम यात्रा शामिल लोगों के साथ थे। जिला अधिकारी के वाहन को उस शव यात्रा से आगे ले जाने की कोशिश करने पर भीड़ ने गोपालगंज के तत्कालीन जिला अधिकारी को पीट-पीट कर मार दिया गया था। स्थानीय अदालत ने आनंद मोहन को 05 अक्टूबर 2007 को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर 10 दिसंबर 2008 को पटना उच्च न्यायालय राहत देते मौत की सजा को कठोर उम्र कैद बदल दिया था। उच्च न्यायालय के इस फैसले की 10 जुलाई 2012 को शीर्ष न्यायालय ने पुष्टि की थी। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्वर्गीय कृष्णैया की विधवा की याचिका पर शीघ्र सुनवाई की गुहार एक मई को स्वीकार करते हुए मामले को आज (08 मई) को सूचीबद्ध का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता तानिया श्री ने पीठ के समक्ष 'विशेष उल्लेख' के दौरान इस मामले को उठाते हुए शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाई थी। राज्य सरकार के जेल नियमावली में बदलाव के बाद बाद आनंद मोहन को करीब 14 साल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया गया था। हालांकि, इससे पहले वह कई बार पैरोल पर रिहा किए गए थे।

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