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एक बार फिर रास्ता भटकी मादा चीता 'आशा', कूनो नेशनल पार्क से बाहर देखा गया




Bhopal, नामीबिया से भारत लाए गए चीतों में से एक मादा चीता 'आशा' एक बार फिर भटक कर मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) की सीमा से बाहर चली गई है। एक वन अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पांच वर्षीय आशा, जिसे नाम बदलने से पहले 'एफ1' के नाम से जाना जाता था, बुधवार शाम को पार्क के बफर जोन से भटक गई थी, लेकिन अब ऐसा लग रहा था कि वह वापस आ रही है।


केएनपी का मुख्य क्षेत्र 748 वर्ग किमी में फैला हुआ है जबकि इसका बफर जोन 487 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। अधिकारी ने कहा, "बुधवार शाम आशा बफर जोन से बाहर निकल गई। वह आगे बढ़ती रही, लेकिन बृहस्पतिवार को वह वापस आने लगी। अब वह बफर जोन के करीब है।"


इससे पहले आशा अप्रैल के पहले पखवाड़े में भी पार्क से बाहर निकली थी, लेकिन अपने आप ही लौट आई थी। एक नर चीता ‘‘पवन'' भी इस महीने में दो बार पार्क से बाहर निकल चुका है। उसे दोनों बार बेहोश कर वापस लाया गया। केएनपी के अधिकारियों के अनुसार, ‘पवन' के विपरीत ‘आशा' को कृषि क्षेत्रों में देर तक रुकना पसंद नहीं है और अगर लोग आस-पास हों तो वह विचलित हो जाती है। वन अधिकारी ने कहा, "हम उसके गले में लगे रेडियो कॉलर की मदद से उसकी हरकतों पर नजर रख रहे हैं।"


आशा और पवन देश में चीता की आबादी को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित करके पुनर्जीवित करने के भारत के महत्वाकांक्षी प्रयासों का हिस्सा हैं। कुछ वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि एक चीते के लिए 100 वर्ग किमी के आवास की आवश्यकता होती है और केएनपी में जिसमें अब 18 स्थानांतरित चीते हैं (दो जानवर अब तक मर चुके हैं) के पास पर्याप्त जगह नहीं है।


लेकिन एक अन्य वन अधिकारी ने कहा कि यह निर्धारित करना मुश्किल है कि चीते को वास्तव में कितने क्षेत्रफल की आवश्यकता है। इस विषय पर कुछ साहित्य में कहा गया है कि एक मादा चीता को 400 वर्ग किलोमीटर के आवास की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा, “कोई नहीं जानता कि एक चीता को कितनी जगह चाहिए क्योंकि ये जानवर सात दशक पहले भारत में विलुप्त हो गए थे। हम वास्तव में अभी भी उनकी आदतों के बारे में सीख रहे हैं।"


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को केएनपी में नामीबिया से लाए गए आठ चीतों के पहले समूह को बाड़ों में छोड़ा। उनमें से एक मादा चीता की गुर्दे की बीमारी के कारण मौत हो गई। दक्षिण अफ्रीका से आयातित बारह चीतों की दूसरी खेप 18 फरवरी को यहां आई थी। उनमें से एक नर चीते की कार्डियो पल्मोनरी विफलता के कारण मृत्यु हो गई।

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