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लघु कहानी : एक टुकड़ा धूप :- आज गाँव से आये हुए पारो को पूरे तीन महीना हो गया...



एक टुकड़ा धूप


आज गाँव से आये हुए पारो को पूरे तीन महीना हो गया,

उम्र के इस पडा़व में अब कहीं जाकर बीते पचास साल की उमर में चैन की नींद सो पा रही है ।



इतने कम समय में ही उसने शहर आकर अपने रहने का ठिकाना और अच्छा खासा काम भी ढूँढ लिया।एक महीने पहले अपने 16 बर्षीय बेटी को भी अपने पास बुला लिया और अब 18 बर्षीय बेटे को भी काम ढूँढकर शहर आने को टिकट भेज दी है। तीनों मिलकर शहर में 20 से से 30 हजार कमा ही लेंगे। बच्चों का भविष्य भी बन जायेगा, धीरे धीरे और कुछ पैसों की बचत होगी, तो गाँव में छत भी पड़ जायेगी और जरूरत का खेत भी ले सकेगें ,जिससे कुछ अनाज भी पैदा कर सकेंगे।


अपनी खुद्दारी, के बल पर उसने जो निर्णय उस रात लिया वो आसान नहीं था.

पारो बीते कल के ख्यालों में खो गयी..


शराबी पति के बेतहाशा मार और कर्कशा सास की रोज रोज की किच किच से परेशान हो गयी थी पारो ,तीन बेटियाँ ब्याह के ससुराल चली गयी । पर उम्र के इस पडाव पर आकर भी उसे आज तक एक पल को चैन न मिल सका।छोटी बेटी आरती और अठ्ठारह बर्षीय बेटा अभिषेक उसके पाँव के बन्धन बधें हुए हैं। गरीबी और गाँव में उच्च माध्यमिक स्कूल न होने के कारण इनकी उचित शिक्षा दीक्षा भी नहीं हो पाई। इनका आगे का भविष्य भी क्या होगा , इसी ऊहापोह में करवट बदलते हुए, आधी रात बीत गयी पर पारो को नींद नही आ रही है गाँव में सारा दिन शरीर तोड़ने के बाद भी न पैसा मिलता है मेहनत का न पति का प्यार न ही औरत होने का घर में सम्मान।

पर आज उसने मन ही मन निश्चय किया वो भी कल शहर जायेगी अकेली सब छोड़ के, अब आगे का जीवन मार खाकर गरीबी और भुखमरी मेंं नहीं जियेगी।अगर पैसा ही जरुरत है खुशियों के लिए तो वह खूब पैसा कमायेगी और अकेली ही आगे का जीवन जियेगी पर आत्मसम्मान से । उसने आधी रात को ही फोन लगा दिया अपनी जिठानी को जो सुबह शहर जाने वाली थी। दीदी कल सुबह आपके साथ मैं भी शहर चलूँगी ।


और फिर उठकर अलसुबह को ही अपना सामान बाँधने लगी ।सामान समेटते हुए उसने चैन की साँस ली,

उसका चेहरा आत्मविश्वास से भर गया।

खिड़की से छनकर आते हुए सुबह के सूरज की एक टुकड़ा धूप उसके चेहरे पर मुस्कुरा उठी ।

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