इंदौर। खिलौनों से खेलने की उम्र में बोरी (अलीराजपुर) के चौथी कक्षा में पढ़ने वाले दस साल के बालक सिद्धम जैन ने इंदौर के हिंकारगिरी तीर्थ पर मुनि दीक्षा लेकर रविवार को मां का सपना पूरा किया।कांधे पर स्कूल बेग लेकर उज्जवल भविष्य के सपने देखने की बजाए साधुवेश धारणकर जैन मुनि श्रीचंदसागर महाराज बन वैराग्य की कठिन डगर को चुना। हाथों में किताबे तो अब भी होगी लेकिन स्कूल की नहीं बल्कि जैन धर्म की शिक्षा देने वाली। जैसे आम माता-पिता की इच्छा अपने बच्चे को डाक्टर-इंजीनियर बनाने की होती है वैसे ही सिद्धम की माता प्रियंका जैन अपने बेटे को वैराग्य के पथ पर आगे बढ़ता देखना चाहती थी। उनके परिवार के दस सदस्य अब तक दीक्षा ले चुके है। उनके दीक्षा गुरु गणिवर्य आनंदचंद्रसागर महाराज बने जो उनके सांसारिक जीवन के मामा है।
मैं उससे हमेशा कहती थी कि संयम मार्ग चलने जैसा
दीक्षा लेना मेरा बचपन से सपना था। पारिवारिक कारणों के चलते दीक्षा नहीं ले सकी। मेरा जो सपना था आज वह मेरे बेटे ने पूरा किया। वह मेरे बताए मार्ग पर चला। मैं उसे हमेशा कहती थी कि संंयम मार्ग चलने जैसा है। इसके लिए बार-बार आचार्यश्री के पास ले जाती थी। दीक्षा मुझे लेना थी, लेकिन ले नहीं ले पाई तो बच्चे को दिलाई। आज वह संयम मार्ग पर आगे जा रहा है।यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
परिवार से अब तक इन्होंने ली दीक्षा
परिवार से बालक सिद्धम के दीक्षा लेने के बाद अब दस लोग दीक्षा ले चुके हैं। इस परिवार से जैन संत बनकर जैन धर्म की प्रभावना कांतिमुनि महाराज, गणिवर्य मेघचंद्रसागर, पदमचंद्र सागर, आनंदचंद्रसागर, प्रियचंदसागर महाराज कर रहे हैं।इसमें साध्वी मेघवर्षाश्रीजी,पदमवर्षाश्रीजी,आनंदवर्षाश्रीजी भी शामिल है। इनके बाद परिवार से दसवी दीक्षा बालक सिद्धम ने लेकर वे मुनि श्रीचंदसागर बने हैं। इससे पहले शहर में 9 वर्षीय तीसरी कक्षा में बढ़ने वाली बालिका प्रियांशी तांतेड़ ने दीक्षा 2018 में ली थी।
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