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भोपाल के तालाबों के पानी में अब भी सुनाई पड़ती है अन्तिम हिन्‍दू गोंड रानी कमलापति के बलिदान की गूंज


 शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

इतिहास के पन्नों को पलटने से ज्ञात होता है कि 1600 से सन् 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्‍य रहा और भोपाल पर भी उन्हीं का शासन था। गोंड राजा निज़ाम शाह की सात पत्नियां थीं, जिनमें कमलापति सबसे सुंदर थीं। उनकी इच्छा से तालाब के तट पर एक महल का निर्माण किया गया जो सन् 1702 में पूर्ण हुआ, जिसे आज भी रानी कमलापति महल के नाम से जाना जाता है। आज इसके अवशेष छोटे और बड़े तालाब के पार्क में देखे जाते हैं। सन् 1989 से भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस महल को अपने संरक्षण में ले लिया।


गोंड समुदाय का राजवंश गिन्नौरगढ़ से बाड़ी तक फैला हुआ था। उनका साम्राज्य गढ़ा कटंगा (मंडला) 52 गढ़ के आधिपत्य में यह राज्य रहे। रायसेन किला सन् 1362 से 1419 तक राजा रायसिंह का 57 वर्ष का कार्यकाल रहा। यह किला इनके द्वारा बनवाया गया था। लगभग ईस्वी 14वी में जगदीशपुर (इस्लाम नगर) में गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा। इस महल को भी गोंड राजाओं के द्वारा बनवाया गया था। सन् 1715 में अंतिम गोंड राजा नरसिंह देवड़ा रहे। 

भोपाल शाही सन् 476 से 533 तक लगभग 60 वर्षों तक इनका शासन रहा। गोंड समाज के प्रथम धर्म गुरु पारी कुपार लिंगो बाबा ने पांच देव सगा समाज वाले के लिये बैरागढ़ का स्थान निश्चित किया। तभी से गोंडवाना समाज के लोग बैरागढ़ से हजारों किलोमीटर की दूरी पर निवास करने के बाबजूद भी बैरागढ़ में बड़ा देव की पूजा अर्चना करने आते हैं। यह गोंडों का सबसे बड़ा देवस्थल है।

बाड़ी जिला रायसेन के अंतिम शासक चैन सिंह 16वी ईस्वी में रहे। 16वीं सदी में सलकनपुर जिला सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासन काल में वहां की प्रजा बहुत खुश और संपन्न थी। उनके यहां एक खूबसूरत कन्या का जन्म हुआ। वह बचपन से ही कमल की तरह बहुत सुंदर थी। उसकी सुंदरता को देखते हुए उसका नाम कमलापति रखा गया। वह बचपन से ही वह बहुत बुद्धिमान और साहसी थी। शिक्षा, घुड़सवारी, मलयुद्ध, तीर कमान चलाने में उन्हें महारत हासिल थी। अनेक कलाओं से पारंगत होकर राजकुमारी कुशल प्रशिक्षण प्राप्त कर सेनापति बनी। वह अपने पिता के सैन्य बल और अपनी महिला साथी दल के साथ युद्धों में शत्रुओं से लोहा लेती थी। पड़ोसी राज्य अकसर खेत, खलिहान, धन सम्पत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते थे और सलकनपुर राज्य की देखरेख करने की पूरी जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी बेटी राजकुमारी कमलापति की थी।

कमलापति धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और उनकी खूबसूरती की चर्चा चारों दिशाओ में होने लगी। इसी सलकनपुर राज्य में बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह जो राजा कृपाल सिंह सरौतिया का रिश्ते में भांजा लगता था। वह राजकुमारी कमलापति से विवाह करने की इच्छा रखता था। लेकिन उस छोटे से गांव के जमींदार से राजकुमारी कमलापति ने शादी करने से मना कर दिया।

16वीं सदी में भोपाल से 55 किलोमीटक दूर 750 गांवों को मिलाकार गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सूराज सिंह शाह (सलाम) थे। इनके पुत्र निजामशाह थे। निजाम शाह बहादुर, निडर तथा हर कार्यक्षेत्र में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ। राजा निजाम शाह ने रानी कमलापति को प्रेम स्वरूप ईस्वी 1700 में भोपाल में सात मंजिला महल का निर्माण करवाया जो लखौरी ईंट और मिट्टी से बनवाया गया था। यह सात मंजिला महल अपनी भव्यता, सुंदरता और खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध था। रानी कमलापति का वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल व्यतीत हो रहा था। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम नवल शाह था।


सलकनपुर राज्य में बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह राजकुमारी कमलापति की शादी होने के बाद भी उनसे विवाह करने की इच्छा रखता था। उसने कई बार राजा निजामशाह को मारने की कोशिश की, जिसमें वह असफल रहा। एक दिन प्रेम पूर्वक उसने राजा निजामशाह को भोजन पर आमंत्रित किया और भोजन में जहर देकर उनकी धोखे से हत्या कर दी। राजा निजामशाह की मौत की खबर ने पूरे गिन्नौरगढ़ में खलबली पैदा कर दी। इसके बाद रानी कमलापति को अकेले जानकर उन्हें पाने की नीयत से गिन्नौरगढ़ के किले पर उसने हमला कर दिया। रानी कमलापति ने उस समय अपने कुछ वफादारों और 12 वर्षीय बेटे नवलशाह के साथ भोपाल में बने इस महल में छुप जाने का निर्णय लिया। यह उस समय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण महल था।

कुछ दिन भोपाल में समय बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानी आकर रुके हुए हैं जिन्होने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इन अफगानों का सरदार दोस्त मोहम्मद खान थे, जो पैसा लेकर किसी की तरफ से भी युद्ध लड़ते थे। लोक मान्यता कि रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद को एक लाख मुहरें देकर चैनसिंह पर हमला करने को कहा। दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया जिसमें चैन सिंह मारा गया और किले को हड़प लिया। रानी कमलापति को अपने छोटे बेटे की परवरिश की चिंता थी। उन्होंने दोस्त मोहम्मद के इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन दोस्त मोहम्मद अब सम्पूर्ण भोपाल की रियासत पर कब्जा करना चाहता था। उसने रानी कमलापति को अपने हरम में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा। वह वास्तव में रानी को अपने हरम में रखना चाहता था।


दोस्त मोहम्मद खान के इस नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लालघाटी में युद्ध करने चला गया। इस घमासान युद्ध में दोस्त मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहां की जमीन लाल हो गई और इस कारण इसे लालघाटी कहा जाने लगा। इस युद्ध में 2 लड़के बच गए थे जो किसी तरह अपनी जान बचाते हुए मनुआभान की पहाड़ी पर पहुंच गए। उन्होंने वहां काला धुआं कर रानी कमलापति को संकेत दिया कि वे युद्ध हार गए हैं और आपकी जान को खतरा है।


रानी कमलापति ने विषम परिस्थति को देखते हुए अपनी इज्जत को बचाने के लिए बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा। जिसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता है। रानी कमलापति ने महल की समस्त धन, दौलत, जेवरात, आभूषण आदि इसमें डालकर स्वयं जलसमाधि ले ली। 

दोस्त मोहम्मद खान जब अपनी सेना को साथ लेकर लालघाटी से इस किले तक पहुंचा, उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था। दोस्त मोहम्मद खान को न रानी कमलापति मिली और न ही धन दौलत। जीते जी उन्होंने भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवनलीला खत्म की थी और उनकी मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान के साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ।


नारी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए रानी कमलापति ने जल समाधि लेकर इतिहास में अमिट स्थान बनाया है। उनका यह कदम उसी जौहर परंपरा का पालन था, जिसमें हमारी नारी शक्ति ने अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया है। उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रानी कमलापति ने भी सब गंवाया, लेकिन जीवन रहते अपनी नारी गरिमा को विधर्मियों से बचा लिया। गोंड रानी कमलापति आज तीन सौ वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं और उनके बलिदान का सम्मान करके हम स्वयं ही कृतज्ञ हैं। भोपाल का हर हिस्सा उनकी कहानी सुनाता है। यहां के तालाबों के पानी में उनके बलिदान की गूंज भी सुनी जा सकती है। ऐसा लगता है मानो वह स्वयं यहां की कलकल धारा हैं। गोंड रानी अब पानी बनकर भोपाल की रवानी में अविरल बहती हैं।
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