रक्षाबंधन : सावन मास की पूर्णिमा को भद्रा रहित शुभ मुहूर्त में रक्षाबन्धन का पर्व आयु और आरोग्य की वृद्धि हेतु मनाया जाता है। पूर्ण चन्द्र पूर्णिमा को ही रहता है और पूर्णिमा तिथि के देवता चन्द्रमा है। अतः रक्षा बंधन हेतु पूर्णिमा तिथि उचित है.
सामान्यतः रक्षापर्व श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है किंतु इस वर्ष 22 अगस्त रविवार को धनिष्ठा में मनेगा। शोभन ,अमृत व गजकेसरी महा योग इस पर्व की शोभा बढाएंगे।
पूर्णिमा तिथि शाम 5 बजकर 31 मिनिट तक रहेगी।शोभन योग प्रातः 10.38 बजे तक रहेगा,अमृत योग सुबह 5.45 से शाम 5.32 तक रहेगा।मकर-कुम्भ राशि का चन्द्रमा, सिंह राशि का सूर्य व कुम्भ राशि के बृहस्पति में बहिने अपने अपने भाई की कलाई पर आयु व आरोग्य की कामना से रक्षा बांधेगी।
इस वर्ष रक्षापर्व पर भद्रा का साया नहीं
सामान्यतः भद्रा काल मे रक्षा बंधन वर्जित है। भद्रा प्रातः 6 बजकर 16 मिनिट तक है। इसके बाद पूरे दिनभर शुभ मुहूर्त में रक्षापर्व अपनी अपनी कुल परम्परा अनुसार मनाया जाना शुभ है। भद्रा में रक्षा बंधन से राजा का अनिष्ठ होता है।
इंद्र को देवराज वृहस्पति व इंद्राणी ने अभिमन्त्रित रक्षासूत्र युद्ध मे विजयी होने हेतु बांधा था। पूर्व में विद्वान ब्राह्मणों से रक्षासूत्र मन्त्रोच्चार के साथ यजमानों को बंधवाने की परम्परा प्रचलित थी ।आजकल बहिनों द्वारा अपने भाई की कलाई में रक्षा बांधी जाती हैं।किन्तु इंद्राणी ने इंद्र को रक्षा बांधी थी। इसके चलते मध्यकाल में इस प्रथा को और ज्यादा बल मिला। आजकल बहिने ही अपने भाइयों के दाहिने हाथ मे रक्षा बंधन करती है।यह परम्परा आज भी अविछिन्न रूप से निरन्तर चली आ रही है। अब यह पर्व रक्षा सूत्र से तैयार राखी में परिवर्तित हो गया है।
रक्षासूत्र कैसे तैयार करें और किस मन्त्र से रक्षा बन्धन करें
रक्षा सूत्र तैयार करने की विधि - सावन पूर्णिमा को स्नान आदि कर्म से निवृत्त हो शुभ मुहूर्त में कुल परम्परा अनुसार श्री गणेशजी व कुल देवता का स्मरण कर रक्षा सूत्र बनाने की परंपरा है। ऊनी, सूती अथवा रेशमी पीला कपड़ा लेकर उसमें सरसों, केशर, चन्दन, अक्षत, दूर्वा रख बन्धन तैयार किया जाता है। यह रक्षासूत्र कहलाता है जो धारणकरता की सर्वविध रक्षा करता है। एक चौकी पर कलश स्थापित कर उस पर रक्षासूत्र की सविधि गन्ध, अक्षत पुष्प आदि से पूजन कर *ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रोमहा बलः। तेन त्वामनु बध्नामि रक्षे मा चल मा चल* इस मंत्र से दाहिने हाथ मे रक्षा सूत्र बांधने से आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है।
शुक्ल पूर्णिमा को विधि विधान से रक्षासूत्र तैयार कर स्वस्ति वाचन के साथ इंद्राणी ने इंद्र को युद्ध मे विजयी होने की भावना से स्वस्ति महामन्त्र से रक्षा सूत्र बांधा था तब से आज तक यह परम्परा रक्षाबंधन के नाम से चली आ रही हैं। रक्षाबन्धन प्रात:6.16 के बाद पूरे दिन शुभ मुहूर्त में कर सकते है।
0 comments:
Post a Comment