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किसान अपनी मांगों पर अड़े, सरकार ने कहा-राष्ट्रहित के बारे में भी सोचें

 


नई दिल्ली :  सरकार और किसान संगठनों के बीच आठवें दौर की वार्ता फिर बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई। मुश्किल से दो घंटे की बातचीत के दौरान माहौल सामान्य नहीं रहा, जिससे वार्ता स्थगित हो गई। लेकिन, अगली वार्ता के लिए 15 जनवरी की तारीख पर सहमति बन गई है। किसान संगठनों के नेता न तो सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार हुए और न ही कोई और विकल्प पेश कर सके। सरकार की ओर से इन सभी मुद्दों पर विशेषज्ञ समिति के गठन की बात कही गई, जिसे किसान नेताओं ने खारिज कर दिया। वे कृषि कानूनों को रद करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी वाला कानून बनाने की मांग पर अड़े रहे।

वहीं सरकार ने कहा कि विभिन्न राज्यों के किसान संगठनों ने कृषि कानूनों का स्वागत किया है। किसान नेताओं को राष्ट्रहित का भी ध्यान रखना चाहिए। किसान नेताओं ने वार्ता के दौरान एक बार फिर पोस्टर दिखाकर अडि़यल रुख जाहिर किया। उन्होंने लड़ेंगे-जीतेंगे या मरेंगे, यहीं लड़ेंगे-यहीं मरेंगे जैसे नारे लिखे पोस्टर दिखाए। बैठक समाप्त होने के बाद बाहर आए किसान नेताओं ने वार्ता विफल होने की तोहमत सरकार पर लगाई। 

दूसरी ओर सरकार ने साफ किया कि उनकी ओर से स्पष्ट संदेश दिया गया कि कानूनों के प्रावधानों पर एक-एक कर चर्चा होनी चाहिए। जिन प्रावधानों पर आपत्ति होगी, उन पर विशेष तौर पर विचार-विमर्श किया जा सकता है। लेकिन किसान संगठन उस पर तैयार ही नहीं हुए। सरकार के प्रस्तावों को उन्होंने खारिज कर दिया।किसान नेता बार-बार वार्ता की मेज पर तो आते हैं, लेकिन बातचीत नहीं करते। 

कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने वार्ता के बाद पत्रकारों से कहा कि बातचीत के दौरान बहुत सारी बातें आती हैं। उन सबको सार्वजनिक करना ठीक नहीं होता है। लेकिन चर्चा के दौरान कुछ ऐसे विषय ध्यान में आए हैं, जिन पर दोनों पक्ष अगली बैठक में अपनी तैयारी करके आएंगे। तोमर ने स्पष्ट कहा कि किसान नेता उस दिन विकल्प लेकर आएंगे तो समाधान हो जाएगा।

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