भगवान श्रीकृष्ण का नाम जब भी लिया जाता है तो ऐसा कभी नहीं होता कि राधा जी का नाम न लिया जाए। ये दो नाम एक दूसरे से हमेशा के लिए जुड़ गए हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद राधाअष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। राधा रानी का जन्मोत्सव भादों माह शुक्लपक्ष की अष्टमी को श्रीराधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
यह व्रत चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी में करने का
विधान है। इसलिए 25 अगस्त को दिन के एक बजकर 58
मिनट पर सप्तमी तिथि समाप्त हो रही है। उसके बाद अष्टमी तिथि आरम्भ हो रही है। जो 26
अगस्त को दिन के 10 बजकर 28 मिनट तक ही
विद्यमान रहेगी। उसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी। इसलिए शास्त्र मत के अनुसार यह व्रत
25 अगस्त मंगलवार को मनाया गया। कहीं-कहीं बुधवार को भी राधा अष्टमी
मनाई जा रही है।
श्रीकृष्ण को आम भक्त राधे-कृष्ण कहकर ही
पुकारते हैं। ये दो नाम एक दूसरे से हमेशा के लिए जुड़ गए हैं। राधा रानी के बिना
कृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि राधाष्टमी के व्रत के
बिना कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं मिलता है। राधाअष्टमी
के दिन राधा और कृष्ण दोनों की पूजा की जाती है।
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