बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर वैश्विक वेसाक
महोत्सव कार्यक्रम के कार्यक्रम में पीएम मोदी का संबोधन हुआ। इस बार कोरोना
संक्रमण के कारण बुद्ध पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन वर्चुअली किया गया। इसमें कोरोना
पीड़ितों और कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले योद्धाओं के प्रति सम्मान व्यक्त किया
गया।
पीएम ने अपने संबोधन के शुरू में कहा, आप
सभी को और विश्वभर में फैले भगवान बुद्ध के अनुयायियों को बुद्ध पूर्णिमा की,
वेसाक
उत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आपने इस समारोह को कोरोना वैश्विक महामारी से
मुकाबला कर रहे पूरी दुनिया के हेल्थ वर्कर्स और दूसरे सेवा-कर्मियों के लिए
प्रार्थना सप्ताह के रूप में मनाने का संकल्प लिया है। करुणा से भरी आपकी इस पहल
के लिए मैं आपकी सराहना करता हूं। भगवान बुद्ध के बताए 4 सत्य यानि दया,
करुणा,
सुख-दुख
के प्रति समभाव और जो जैसा है उसको उसी रूप में स्वीकारना, ये सत्य निरंतर
भारत भूमि की प्रेरणा बने हुए हैं।
पीएम ने कहा, आज आप भी देख
रहे हैं कि भारत निस्वार्थ भाव से,बिना किसी भेद के,अपने
यहां भी और पूरे विश्व में, कहीं भी संकट में घिरे व्यक्ति के साथ
पूरी मज़बूती से खड़ा है। भारत आज प्रत्येक भारतवासी का जीवन बचाने के लिए हर संभव
प्रयास तो कर ही रहा है, अपने वैश्विक दायित्वों का भी उतनी ही
गंभीरता से पालन कर रहा है।बुद्ध भारत के बोध और भारत के आत्मबोध, दोनों
का प्रतीक हैं। इसी आत्मबोध के साथ, भारत निरंतर पूरी मानवता के लिए,
पूरे
विश्व के हित में काम कर रहा है और करता रहेगा। भारत की प्रगति, हमेशा,
विश्व
की प्रगति में सहायक होगी।
पीएम मोदी के संबोधन की बड़ी बातें
ऐसे समय में जब दुनिया में उथल-पुथल है,
कई
बार दुःख- निराशा- हताशा का भाव बहुत ज्यादा दिखता है, तब भगवान बुद्ध
की सीख और भी प्रासंगिक हो जाती। वो कहते थे कि मानव को निरंतर ये प्रयास करना
चाहिए कि वो कठिन स्थितियों पर विजय प्राप्त करे, उनसे बाहर
निकले। थक कर रुक जाना कोई विकल्प नहीं होता।
आज हम सब भी एक कठिन परिस्थिति से निकलने के लिए, निरंतर जुटे हुए
हैं, साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
बुद्ध किसी एक परिस्थिति तक सीमित नहीं हैं,
किसी
एक प्रसंग तक सीमित नहीं हैं। सिद्धार्थ के जन्म, सिद्धार्थ के
गौतम होने से पहले और उसके बाद, इतनी शताब्दियों में समय का चक्र अनेक
स्थितियों, परिस्थितियों को समेटते हुए निरंतर चल रहा है।
समय बदला,स्थिति बदली,
समाज
की व्यवस्थाएं बदलीं, लेकिन भगवान बुद्ध का संदेश हमारे जीवन में
निरंतर प्रवाहमान रहा है। ये सिर्फ इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि,बुद्ध
सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक पवित्र विचार भी है।
बुद्ध,त्याग और तपस्या की सीमा है। बुद्ध,
सेवा
और समर्पण का पर्याय है। बुद्ध, मज़बूत इच्छाशक्ति से सामाजिक परिवर्तन
की पराकाष्ठा है। प्रत्येक जीवन की मुश्किल को दूर करने
के संदेश और संकल्प ने भारत की सभ्यता को,
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