भोपाल ! मध्य प्रदेश में श्रम कानूनों में सुधार के साथ-साथ सरकार ने अब
औद्योगिक इकाइयों में काम नहीं तो वेतन नहीं का फार्मूला भी लागू कर दिया है। इसके
तहत औद्योगिक इकाई चलने पर श्रमिक काम पर नहीं आते हैं तो फिर वेतन का दावा नहीं
कर सकेंगे। प्रबंधन न उन्हें वेतन देने को बाध्य नहीं होगा।
यह व्यवस्था इसलिए लागू की गई है ताकि कारखाना
प्रबंधकों पर अनुचित दवाब न बने। श्रम विभाग ने बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद
खंडपीठ के 30 अप्रैल 2020 के फैसले के
आधार पर यह कदम उठाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि कारखाना प्रारंभ
होने पर भी श्रमिक काम पर नहीं आता है तो वेतन का हकदार नहीं है।
प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान इकाइयां बंद होने
से सरकार ने बिना किसी कटौती श्रमिकों को वेतन भुगतान के निर्देश दिए थे।
उद्यमियों ने इसके तहत भुगतान भी किया। जहां से वेतन नहीं देने की शिकायतें आई थीं,
वहां
श्रम विभाग ने दखल देकर वेतन भी दिलवाया।
इसी दौरान कई औद्योगिक एवं व्यापारिक संगठनों
के माध्यमों से सरकार को यह सूचना भी मिली कि जो इकाइयां चालू हैं, उनमें
श्रमिक बुलाने पर भी काम करने नहीं आ रहे हैं। इसके बाद भी वेतन भुगतान का दवाब
बनाया जा रहा है। इसे देखते हुए श्रम विभाग ने परिपत्र जारी कर स्पष्ट किया है कि
अब ग्रीन और ऑरेंज जोन में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक
इकाइयों के संचालन की अनुमति दी गई है।
श्रमिकों को बुलाए जाने पर वे यदि काम करने के
लिए स्वेच्छा से नहीं आते हैं तो प्रबंधन कार्य नहीं तो वेतन नहीं' के
सिद्धांत पर वेतन कटौती करने के लिए स्वतंत्र है। विभाग ने सभी श्रम संगठनों से
कहा कि वे श्रमिकों से कहें कि वे अनुमति लेकर खोले गए संस्थानों में उपस्थित हों।
ऑल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन मंडीदीप के अध्यक्ष
राजीव अग्रवाल ने इस फैसले को जायज ठहराते हुए कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब इकाइयां
बंद थीं तब भी उद्यमी अपने श्रमिकों को वेतन दे रहे थे। उनके ठहरने और भोजन का
इंतजाम कर रहे थे लेकिन जब कोई काम पर ही नहीं आएगा तो कोई क्या करेगा। पीथमपुर
औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने भी इसे सबके हित में उठाया गया कदम
बताया है।
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