रायपुर ! राज्यपाल उइके रायपुर के निरंजन लाल भवन में नक्षत्र निकेतः फाउंडेशन
द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में शामिल हुई। उन्होंने मुख्य
अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए कहा कि ज्योतिष विज्ञान हमारे देश के प्राचीन
इतिहास का हिस्सा ही नहीं है, अपितु यह हमारी अनमोल पूंजी है। ये
भारत की प्राचीन विद्या है, इसे सहेजा जाना चाहिए। इसमें निरंतर
शोध करें और इसे अधिक परिष्कृत करने का प्रयास करें। सुश्री उइके ने कहा कि उनकी
भी इस विद्या में रूचि रही है। देश में इस समय तनाव का भी माहौल है, आशा
है कि इस सम्मेलन से सकारात्मक वातावरण बनाने में मदद मिलेगी और समाधान का रास्ता
निकलेगा।
राज्यपाल ने कहा कि ज्योतिष आरंभ से ही हमारी
शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा है। ज्योतिष का संबंध विज्ञान की तरक्की से भी जुड़ा
है। भारत में विज्ञान की तरक्की की बड़ी वजह ज्योतिष भी रहा। ज्योतिषीय गणना के
लिए वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त आदि वैज्ञानिकों ने ग्रहों की गति
के अध्ययन किये। प्राचीन काल में ज्योतिष की भूमिका राज्य में मार्गदर्शक की होती
थी। जो राजा को समय-समय पर सलाह देता था। आज यह नये रूप में सामने आ रहा है। इसमें
नई तकनीक जुड़ गई है।
राज्यपाल ने कहा कि अब ज्योतिष शास्त्र का
दायरा भी बढ़ता जा रहा है। लोग अपने बच्चे के कैरियर के मार्गदर्शन में या समस्या
के समाधान में ज्योतिष की सलाह ले रहे हैं। वास्तु विज्ञान का महत्व इतना बढ़ गया
है कि वास्तु विशेषज्ञ की सलाह पर मकान का निर्माण करते हैं या उसमें आवश्यक
परिवर्तन भी करते हैं। उन्होंने आग्रह किया है कि जब कोई व्यक्ति मानसिक तनाव के
दौर से गुजरता है तभी वह ज्योतिष के पास जाता है, जब उनके पास कोई
आए तो उसे संबल प्रदान करें। वह एक तरह से ज्योतिष, काउंसलर की
भूमिका निभा सकता है जो मानसिक तनाव से मुक्त करे, साथ ही सही सलाह
भी प्रदान करे। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी के समय ज्योतिष
को बढ़ावा देने के क्षेत्र में बड़ा कार्य किया गया।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने
कहा कि ज्योतिष ब्रम्हाण्ड के अध्ययन का माध्यम है। हम यह भी कह सकते हैं कि
ब्रम्हाण्ड की शुरूआत के साथ ज्योतिष की शुरूआत हुई है। यह हमेशा से वेद वेदांग का
हिस्सा रहा है। 17वीं शताब्दी तक इसका निरंतर विकास होता रहा,
पर
हमारे इन उपलब्धियों को ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों के दबाव के कारण आगे नहीं
बढ़ पाया। श्री जोशी ने कहा कि संस्कृत हमारी देवलिपि है, इसका अध्ययन
अवश्य करें, क्योंकि इसके ज्ञान से ही इस प्राचीन विद्या को
हम ग्रहण कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि उस समय के विद्वानों ने हजारों साल बाद के
कलयुग की भी गणना के माध्यम से जानकारी दे दी थी। जोशी ने कहा कि हमें दुनिया के
अन्य जगह पर होने वाले ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए। कम्प्यूटर और अन्य तकनीक को भी
अध्ययन का हिस्सा बनाना चाहिए। उन्होंने ज्योतिषों से आह्वान किया कि वे अपने अंदर
आत्मविश्वास रखें कि वह जो भी कह रहे हैं, वह सही हैं, उस पर अडिग
रहें। इस विज्ञान पर और शोध करें और उल्का पिंड, धूमकेतु इत्यादि
के प्रभाव का भी अध्ययन करें। जोशी ने ज्योतिष के क्षेत्र में महिलाओं को आगे
बढ़ाने पर भी जोर दिया।
0 comments:
Post a Comment