राज्यपाल ने कहा है कि तेजी से बदलते वैश्विक
दौर में हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र के विकास के लिये कार्य करना चुनौतीपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन हस्तशिल्प और हथकरघा पद्धति का विकास कर हम
रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर निर्मित कर सकते हैं। राज्यपाल हिन्दी भवन में
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित त्रि-स्तरीय
पंचायती राज प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
राज्यपाल ने कहा कि पंचायत राज व्यवस्था हमेशा
से ग्रामीण विकास की धुरी रही है। हमारे देश के हस्तशिल्प और हथकरघा की दुनियाभर
में विशिष्ट पहचान रही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मशीनीकरण
के दौर ने इन कलाओं के विकास को प्रभावित किया है। प्राचीन दौर में इन कलाओं के
माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को उनके गाँव में ही रोजगार के अधिक से अधिक अवसर
मिल जाते थे। राज्यपाल ने कहा कि देश की आदिवासी संस्कृति की समृद्धि के लिये
निरंतर प्रयास करना भी जरूरी है।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान
विश्वविद्यालय, महू की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि
विश्वविद्यालय डॉ. अम्बेडकर के सपनों और आदर्शों को केन्द्र में रखकर निरंतर कार्य
कर रहा है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर
निर्मित करने के लिये पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिये जाने की व्यवस्था की
गई है। विश्वविद्यालय द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में हस्तशिल्प और हथकरघा के विकास
के लिये जागरूकता कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं। प्रो. शुक्ला ने बताया कि इस
प्रशिक्षण कार्यक्रम में रायसेन, सीहोर और भोपाल जिले के कारीगरों और
पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिये जाने की व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि
विश्वविद्यालय ने महू के पास 12 गाँव गोद लिये हैं, इन
गाँवों में सामाजिक विकास के लिये जन-जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
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