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विंध्यवासिनी : मिरजापुर के इस जगह पर मां के दर्शन मात्र से हो जाती है मनोकामना पूरी

शरद ऋतु ने दस्तक दे दी है। फिजा में रंग घुलने लगे हैं शारदीय नवरात्र के। इस मौसम में पर्यटकों में धार्मिक पर्यटक स्थलों का क्रेज भी खूब देखा जाता है। मीरजापुर भी ऐसे ही खास पर्यटक स्थलों में एक है, जो ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों तरह के पर्यटन का विकल्प प्रदान करता है। आसमान छूते पहाड़, छोटे-छोटे झरनों की फुहार, रोमांचित करने वाले जल प्रपात तथा गुफा के पत्थरों पर बने भित्ति चित्र के इतिहास को समेटे यह विंध्य क्षेत्र गाथाओं से परिपूर्ण है।
मीरजापुर से करीब सात किमी की दूरी पर स्थित विंध्याचल भौगोलिक दृष्टि से भारत का मध्य बिंदु माना जाता है। विंध्य पर्वत का ईशान कोण विंध्य क्षेत्र में ही माना जाता है। मान्यता है कि इसी कोण पर मां विंध्यवासिनी विराजमान हैं, जहां गंगा नदी विंध्य पर्वत को स्पर्श करते हुए बहती है। मान्यता है कि नवरात्र के दिनों में आज भी मां विंध्यवासिनी भक्तों को दर्शन देने के लिए पताका पर विराजती हैं।
यह देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां तीन किलोमीटर के दायरे में तीन देवियों के दर्शन होते हैं। इस तीर्थ के केंद्र में मां विंध्यवासिनी कालीखोह पहाड़ी पर विराजमान हैं। इनके पास ही मां अष्टभुजा और महाकाली देवी अष्टïभुजा नामक दूसरी पहाड़ी पर निवास करती हैं। अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है। विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां देवी के संपूर्ण विग्रह के दर्शन होते है। त्रिकोण यंत्र पर स्थित यह देवी लोक हित के लिए महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी माता विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली अधिष्ठात्री देवी हैं। यह अपने उपासकों को मनोवांछित फल देती हैं। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र में यहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इस तथ्य की पुष्टि श्री दुर्गा सप्तशती से भी होती है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी भगवती की मातृभाव से उपासना करते हैं। तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते है। यहां प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को माता विंध्यवासिनी का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस तिथि को अरण्य षष्ठी भी कहा जाता है। 
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