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जन्माष्टमी : क्यों चढ़ाया जाता है भगवान श्रीकृष्ण को 'छप्पन भोग'

भगवान श्री हरि विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लेकर आम भक्तो को अनुग्रहित किया था। माना जाता है कि लोगों के बीच मनुष्य रूप में वो आज भी मौजूद हैं इसलिए कृष्ण की सेवा मनुष्य रूप में की जाती है। सर्दियों में इन्हें कंबल और गर्म बिस्तार पर सुलाया जाता है। उष्मा प्रदान करने वाले भोजन का भोग लगाया जाता है।
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में माना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हर साल इस दिन को बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। भारतीय कैलेंडर के अनुसार यह बहुत बड़ा त्योहार होता है और हिन्दू इस दिन को बेहद ही शुभ मानते हैं।
भक्त अपने भगवान को कृष्ण, कन्हैया, गोविंद, गोपाल, नंदलाल, ब्रिजेश, मनमोहन, बालगोपाल, मुरली मनोहर, वासुदेव और अनेक नामों से बुलाते हैं। ज्यादातर लोग जन्माष्टमी के दिन पूरे दिन का उपवास रखते हैं। जिन लोगों ने उपवास रखा होता है वह इस दिन अपना व्रत पूरा करने के लिए आधी रात तक जागते हैं क्योंकि माना जाता है भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था।
भगवान को भोग लगाने के लिए उनके भक्त 56 तरह के पकवान भोग में चढ़ाते हैं। भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं। हिन्‍दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्‍ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। 
जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। श्रीकृष्ण लगातार सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाए खड़े रहें, अंत में भगवान इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। 
भगवान श्रीकृष्ण हर रोज भोजन में आठ तरह की चीजें खाते थे, लेकिन सात दिनों से उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। इसलिए सात दिनों के बाद गांव का हर निवासी अभार प्रकट करने के लिए उनके लिए 56 तरह (आठ गुणा सात) के पकवान बनाकर लेकर आया।

भोग को पारंपरिक ढ़ंग से अनुक्रम में लगाया जाता है, सबसे पहले दूध से शुरुआत की जाती है फिर बेसन आधारित और नमकीन खाना और अंत में मिठाई, ड्राई फ्रूट्स और इलाइची रखी जाती है। सबसे पहले भगवान को यह भोग चढ़ाया जाता है और बाद में इसे सभी भक्तों और पुजारियों में बांटा जाता है।
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